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पहली बार किताबों की दुनिया की सैर…

मेरा नाम विश्वनाथ है पर प्रयोग और बुकवर्म के
साथी हमें टिंकु नाम से पुकारते हैं/ जानते हैं
, जो की हमे
अच्छा लगता है। हमारा प्रयोग के साथ 1 अप्रैल 2021 से जुड़ाव हुआ। इस बार मैं स्थाई
रूप से जुड़ा जो की हमें अच्छा लग रहा है।
May 2021 मे कोरोना
भी फिर से अपना भयानक रूप मे आ गया जिसके कारण हमारे राज्य के साथ-साथ अन्य राज्य
मे भी सम्पूर्ण लॉकडाउन लगा।

लॉकडाउन के दौरान हमें एक नयी साथी से जुड़ने का
मौका मिला जो हमारे लिए नयी बात थी। नयी इसलिए थी। हमें नयी -नयी किताब पढ़ने का
मौका मिल रहा था। उस किताब जो की हमने प्रयोग मे देखा था प्रयोग के माध्यम से सुना
था
, जाना था क्यूंकी हमें अपने पढ़ाई के दौरान कभी- भी
ऐसे किताबों को न तो देखा था और नहीं किसी से सुना था। इसलिए भी हमारे लिए उत्साह
का विषय था।

हमारी टीम प्रयोग मे 21 अप्रैल से ही लॉकडाउन लग
गया था हमारे साथी फील्ड मे बच्चों के पास जाना छोड़ दिए थे क्यूंकी इस बार का
कोरोना गाँव मे भी ज्यादा फैल रहा था। जिसके कारण बच्चों के अभिभावक का ही कहना था
की कुछ दिन के लिए इस कार्य को स्थगित कर दिया जाए क्यूंकी आपलोग भी बाहर से आते
हैं
, और बहुत सारे बच्चे एक साथ होते थे तो सब को डर
लग गया। लेकिन हमारे टीम ने बच्चों से संपर्क नहीं छोड़ा । हमारी टीम जाती थी और
किताब वे बच्चों को दे कर आ जाती थी। ऐसा कुछ दिन चला।

इसी दौरान हमारी टीम ने निश्चय किया की हमलोग
खुद भी किताबों को ज्यादा से ज्यादा पढ़ें और उसपे चर्चा करें
,
लिखें, फोन से क्यूंकी हमलोग भी एक साथ एक
स्थान पर नहीं बैठ सकते थे।

हमलोग ने फोन के माध्यम से ही किताब को पढ़ना
शुरू किया और उसी के माध्यम से उस पर चर्चा चालू किया।  पर हमारी चर्चा किताब पर किताबों से बाहर की
बातें ऐसा कुछ दिन ही चला की हमे बुकवर्म के बारे मे जानकारी मिली। बुकवर्म एक ऐसी
संस्था है जो की गोवा मे लाइब्रेरी/ पुस्तकालय पर काम करती है
,
उनका एक अपना ही रास्ता/तरीका है, उनका एक
किताबों का एक संसार है। हमने बुकवर्म के बारे मे प्रयोग टीम से जुडने के पहले ही
सूर्या सर के माध्यम से उनके बारे मे हमें बहुत जानकारी मिलता था और खास करके
बूकवर्म के सुजाता दीदी
, नयन दीदी, अनंदिता
दीदी के बारे मे जो की हमने सुन रखा था
, तो हमें लगता था की
वो किताबों की जीती जागती सरस्वती ही हैं
|

एक समय ऐसा आ ही गया की हमें किताबों के दुनिया
मे रहने वाली किताबों की कीड़ा कहे जाने वाली
, किताबों को
विचारने वाली
, किताबों के अध्ययन करने वाली, किताबों की फ्रेमिंग से लेकर लास्ट के शब्द पर गौर करने वाली हमारी और
हमारी प्रयोग टीम के आत्मा मे बसने वाली हमारे सूर्या सर और हमारे टीम की सबसे
प्रिय सुजाता दीदी
, नयन दीदी और अनंदिता दीदी से फोन/जूम कॉल
के माध्यम से उनका साक्षात दर्शन होने /करने की तारीख मिल गया।

हमारे लिए इतना खुशी का पल
था वो तारीख वो समय जान कर की हमें 22 मई 2021 समय 2:30 पूर्वाहन को उनका साक्षात
हमारे दर्शन होने वाले हैं। उसके बाद हमारे खुशी का ठिकाना नहीं रहा कुछ पल के
लिए। पर फिर कुछ पल बाद हमे हमारी मायूसी छा गई क्यूं
? क्यूंकी मैं जिन व्यक्ति के
सामने होने के बारे मे जानकारी मिला तो वो कोई आम नहीं
, खास थे। हमे शर्म लगने लगा
अपने से
, अपने आप मैं की सवाल करने
लगा की मैं उनके सामने क्या बोलूँगा तो क्या 
होगा
? क्या हम उनकी बातों को समझ
पाएंगे
? क्या वो भी हिन्दी बोलते
होंगे
? क्या वो हमारी बोली समझेंगे ?

क्यूंकी हमें तो हिन्दी ही
बोलने आती है। अंग्रेजी को सोचना भी हमारे लिए गुनाह है। पाप है
, दोष है | मैं क्या बोलूँगा मैं अपने
आप से विचार कर ही रहा था की हमारे दिमाग में एक उत्तर मिला तो भी इतना मजबूत की
उसके बारे मे सोच कर रोना आ रहा था । वो उत्तर था की मैं सत्र मे कुछ बोलूँगा ही नहीं
। मैं अपने आप से ही कहने लगा
, आज की मेरा तबीयत खराब हो जाता किसी कारण, बस मैं उनके सामने नहीं जाता
तो अच्छा रहता । सोचे भी तो क्यूँ नहीं सोचे
, हमारी भी अपनी कभी भी हमने
कभी किताब से लगाव नहीं रखा
, हमारी कार्य भी जो था वो एक ड्राइवर का था | मैं जिस कार्य मे था / करता
था पहले उसमे किताब शब्द दूर दूर तक सुनने को नहीं मिलता था की एक किताब शब्द भी
होता है । जिसके कारण देश प्रदेश के लोगों को जोड़ा जा सकता हा। क्यूंकी हमने तो 10
th तक ही किताब पढ़ा वो थी पाठ्य
पुस्तक इसलिए मैं ज्यादा परेशान भी था। क्यूंकी मैंने डिग्री जरुर
B.A का लिया पर पढ़ा तो वही
क्यूंकी मैं तो परीक्षा को जरूरी समझा
, पढ़ाई को जरूरी नहीं समझा । परीक्षा का तारीख आया और
उसी दिन कलम और गेस पेपर लिया परीक्षा हॉल मे पहुँचा
, चोरी किया, पेज भरा और बाहर आ गया | इसी प्रकार हमें B.A तक की डिग्री लिया, सिर्फ डिग्री लिया, ज्ञान नहीं। जोकि उस दिन लगा
की अगर ज्ञान होता और डिग्री नहीं रहता तो मैं शायद उनकी बातों को समझ पता । इसी
को लेकर हमारे दिमाग मे अनेकों विचार आने लगे। पर “अब पछताए होवे का
, जब चिड़िया चुग गई खेत”। मतलब
तब तक मे अपना सब समय बर्बाद कर चुका था। फिर आखिरकार हमें बुकवर्म टीम के साथ
जुड़ना पड़ा । दिन 22 मई 2021 को जूम कॉल के मदद से हमारे प्रयोग टीम के सभी साथी जो
की पहले भी बुकवर्म टीम से मिले भी थे आमने सामने और फोन पर भी उनलोग की बात होती
थी। लेकिन मैं सिर्फ उनलोगों को फोटो मे देखा और वही से उनका नाम जाना था।

 

पहला सत्र 22 मई 2021 को शुरू
हुआ स्टार्टप के दौरान अपना परिचय शुरू हुआ। लेकिन हमें एक आश्चर्य हुआ की वो भी
हमें नाम से जानते थे क्यूंकी सूर्या सर ने उनको बताए थे। आपस मे परिचय के बाद जो
किताब पर चर्चा शुरू हुआ तो मानो की ऐसा लगा की नील बटा सन्नाटा रह गए। जैसे की
हमलोग के यहाँ  पर प्रयोग टीम का किताब पर
समझ /चर्चा जो होता था और बुकवर्म का जो किताब पर पकड़ था समझ जो उनके पास था तो
मानिए की जमीन और आसमान का फर्क था। हमलोग अपने टीम में अपने बात को रख कर अपनी
बात को घूमकर अपनी पीठ थपथपा लेते थे। लेकिन उनके पहल सत्र के दौरान हमें पता चला
की हम इस कार्य के काबिल नहीं हैं। हम सिर्फ बक- बक करते हैं। मैं किताब को समझता
नहीं था समझना नहीं चाहता ये सारी चीजें हमें अपने आप में दिखने लगा। सत्र के
दौरान मैं भी अपने बात को रखा और सबसे बड़ी बात की बुकवर्म के टीम या मेरे भी साथी
हमारी बातों को सुनी और हमें बोलने का मौका दिए। हमें उसके लिए मैं उन सभी का
शुक्र गुजार हूं।


सत्र तो हमारे लिए ठीक ठाक जैसा तैसा रहा पर सत्र खत्म होने के बाद हमें एक
चीज सोचने को मजबूर कर दिया की मैं जिस तरह से बुकवर्म टीम के साथी के बारे मे जो
हमारे दिमाग मे जो फालतू के बात था की क्या तो हमारी बातें सुनेंगे की नहीं
, हमारा खुद का भाषा उनको समझ मे आएगा की नहीं
आएगा क्यूंकी नयन दीदी ट्रांसलेटर हैं
, मतलब अंग्रेजी तो बोलते ही हैं और हिन्दी के साथ लोकल भाषा जो हमारी भाषा
है उसे भी समझते हैं
, और उसे समझकर अंग्रेजी के अनुवाद करके सुजाता दीदी, अनंदिता दीदी को समझाना ये कोई आम बात नहीं
है। फिर हम सोचे की आज का जो सत्र हुआ उसके बाद हमारे मन मे विचार आया की मैं
सूर्या सर को बोल दूँ की ये पढ़ाई लिखाई अब हमसे नहीं होगा क्यूंकी ये सब अब
हमारे  दिमाग/ समझ के आस- पास भी नहीं आता।
हमारे दिमाग से कोसों दूर से निकल/ गुजर जाता है। लेकिन मैं बोल नहीं पाया क्यूंकी
जो व्यक्ति हम पर समय/ पैसा दोनों निःस्वार्थ खर्च रहें हैं उनको हम क्या और कैसे
बोले की हमसे नहीं होगा । फिर मैंने सोच की एक प्रयास करते हैं। कहीं बदलाव आ जाए
और मैं अपनी बात को मन मे दबा कर रख लिया। फिर एक सप्ताह के गैप के बाद बुक वर्म
टीम से जुड़ने का मौका मिला । इस बार हम जो तैयारी किये थे की कोशिश करूंगा किताबों
के बारे मे उनसे बात करने को पर इस बार फिर एक नया पहलू आया किताबों को लेकर
, विचारों को लेकर, प्रश्नों को लेकर, अब हमें लगा की इतना आसान नहीं है पढ़ाई करना
– एक के बाद एक नया पहलू हमारे समझ के परे था। पर बुकवर्म टीम का समझ हमें लगा की
वो हमे किताबों को गहराई मे भेजना चाहते हैं। लेखक अगर लिखे तो इसका मतलब इस विषय
पर क्या है। क्यूँ लिखे हैं उसके बारे मे जानकारी देना चाहते थे। इसी लिए एक-एक कर
हर पहलू से अवगत करा रहे थे। हमको लगा की उनका सोच और समझ कितना हाई लेवल का है की
वो हमे धीरे -धीरे हर शब्द हर बात से अवगत करा 
रहे थे। हर सत्र मे एक नया विषय को ला रहे थे। ताकि हमें सोचने का मौका
मिले
, हम उस विषय पर समय
और समझ दोनों देने का भी पूरा ख्याल रख रहे थे। लेकिन हमे समझ नहीं आ रहा था । हमे
लगता था की ये क्या हो रहा है हमारे साथ । आज उस पर कुछ सोचता हूँ तो एक नया
प्रश्न हमारे पास आ जाता था क्या करें हम। हमने तो निश्चय किया की अब हमें छोड़
देना चाहिए पढ़ने का काम पर हमें इच्छा /हिम्मत भी नहीं था की हम सूर्या सर से बोल
पाएंगे की हम नहीं कर सकते हैं। वो क्या कहें तो यही ना कहेंगे की तुमको सिर्फ
पढ़ना ही है। क्या तुम पढ़ भी नहीं सकते हो
? किताब के सत्र के दौरान भी एक नया सत्र आया सिलाई का उसमे और भी नए -नए
लोगों से जुड़ने का और उनसे बात करने का मौका मिला ।

 

सिलाई सत्र के दौरान हमें थाथा की कद्दूकिताब की लेखिका – ललिता अय्यर हैं, उनको भी देखने का मौका मिला जो की हमारे लिए सौभाग्य की बात थी। हमारा
बुकवर्म टीम के साथी किताब और सिलाई दोनों पर लगातार चर्चा जारी रहा। किताब हमारे
लिए महत्वपूर्ण था। उनका भी ज्यादा फोकस किताब के ऊपर ही रहता था की हमारी सोच और
समझ नजरिया सभी किताब के प्रति बदले हम भी प्रयास कर रहे थे। हमे भी किताब की अंदर
झाँकने की कोशिश कर रहा था पर हमे संतुष्ट उत्तर अपने आप मे ही नहीं मिल रहा था ।
पर हम अपना प्रयास जारी रखे थे
|  इसी दौरान हमे एक कोर्स करने
का मौका मिल जिसका नाम था Prayog Library Mentoring Support – 
PLMS(II)  जो इसका पहला भाग 2020 मे पूरा
हुआ उस दौरान हम प्रयोग से सम्पूर्ण रूप से नहीं जुड़े थे इस  लिए हमे
PLMS(I) की जानकारी ज्यादा नहीं बस हम इतना जानते हैं की बुकवर्म से एक टीम बिहार
के प्रयोग मे आई थी उसमे से कुछ का नाम हमे याद है । इससे ज्यादा नहीं।
PLMS(II) अगस्त 2021 मे शुरू हुआ – हमसे
और हमारी टीम से कुछ बातों पर सहमति लिया गया हमने भी उस बात को मानने का वचन
दिया। पर मैं अपने वचन पर खरा नहीं उतरा
, यह गलती हमारी है । हम किताब के ऊपर समय नहीं दिये, हमे इसका दो कारण समझ मे आता है -(1) की जो
मेरा काम है मैं उस काम के अलावा और पर फोकस नहीं दिया (2) किताबों से डर जो पढ़ना
आसान है पर गौर करना आसान नहीं है। वही हुआ
PLMS(II) सत्र चलता रहा और मैं शामिल हुआ पर कुछ ख़ास हमने प्रभाव नहीं दिखा ऐसा नहीं
की 
बुकवर्म टीम ने कोई कसार छोड़ा
था
, सारी  गलती नाकामी हमारी है । मैंने अपने वचन के
अनुसार पूर्ण समय नही दिया। 


फिर अक्टूबर मे सुजाता दीदी बिहार प्रयोग मे आई 12
दिन  के लिए । मैंने भी 12 दिन उनके साथ
समय दिया, हमारी टीम ने भी
उनके साथ पूरा समय दिया। दीदी ने हमारी और हमारी टीम की कमजोरियाँ को ऐनक दिखाया ।
हमने और हमारी टीम ने फिर संकल्प लिया की मैं अपने कार्य  के प्रति प्रतिबंध रहेंगे।

 

लेकिन मैं अपने टीम के बारे मे तो नहीं बता सकता पर मैं अपने कार्य के
प्रति प्रतिबद्ध नहीं रहा। दीदी के जाने के बाद मैं फिर पूर्ण रूप से अपना काम पर
ही रहा जो की मेरा काम ड्राइवर का । इसके अलावा मैंने फिर किताबों से दूरी ही रहा।
फिर दिसम्बर  मे गोवा जाना था । उसमे मेरे
टीम के साथ मुझे भी सूर्या सर लेकर मैं उनका बड़प्पन था  क्यूंकी 
मैं सिर्फ
PLMS(II) मे हिस्सा जरूर था उनके नजर मे। पर मैं PLMS(II) के लिए कुछ नहीं किया था। गोवा
जाना हमारे लिए बहुत बड़ी बात थी क्यूंकी मैंने उससे पहले कभी बिहार से बाहर नहीं
गया था। जो भी जगह गए
, ड्राइवर के काम से ही जाना हुआ था पर पहली बार ऐसा था जो मैं ड्राइवर बनकर
नहीं एक लाइब्रेरी  के तौर पर हमें गोवा
जाने का मौका मिला वो भी फ्लाइट से जो कभी भी उसके बारे मे सोचा  भी नहीं था । सिर्फ आसमान मे देखता था और
एयरपोर्ट के गेट पर पैसेंजर लाने जाता था ।

04/12/2021 के पहले तक मैं कभी एयरपोर्ट के गेट के अंदर भी नहीं गया
था और आज हमें एयरपोर्ट के अंदर भी जाना था और एरोप्लेन  मे बैठना भी था। जो हमारे लिए ई ज्यादा खुशी का
समय था की मैं अपने कलम  से व्यक्त नहीं कर
सकता हूँ। प्रयोग टीम गोपालगंज से 04/12/2021 को रात मे पटना आया
, फिर 05/12/2021 को एयरपोर्ट जाना था, 8 बजे तक पहुंचना था । 8 बजे हमलोग एयरपोर्ट पहुँच गए हमारे लिए पहला समय
ऐसा था की गाड़ी और गाड़ी के चाभी के बिना हम एयरपोर्ट आ गए थे । वो भी अपने कंधे पर
बैग लेकर क्यूंकी वहाँ 5 दिन रहना था
| एयरपोर्ट के अंदर गया
फिर सारी प्रक्रिया हुआ। फिर मैं प्लेन के पास गया मानो ऐसा लगा की क्या बताऊँ
आसमान में कितना छोटा लगता है। और जब मैं नजदीक से देखा तो आँखें खुली की खुली रह
गई । क्यूंकी हमारे लिए अपनी आँख से प्लेन को सामने देखना ये दोनों बात आश्चर्यजनक
था। फिर हमलोग प्लेन के अंदर गए
, सूर्या सर का प्लानिंग ऐसा
था की हमे खिड़की वाला सीट मिल गया जो की सोने पे सुहागा था। जब प्लेन रनवे से खुला
उड़ान भरने के लिए जब उसका अगला मुँह हवा में उठा तो हमको बहुत ज्यादा डर लगा। कुछ
देर के लिए तो हम सोचे की जाकर बोलें की रोक दो भाई हमको नहीं जाना है
, हमे उतार दो पर ये संभव थोड़े ही था। वह कोई हमारा वाला गाड़ी थोड़े ही था की
कहीं भी रोक कर उतर गए
, कहीं भी रोक कर चढ़ गए। हमारे बगल मे
कैलाश जी बैठे थे और वो हमारी हिम्मत को बढ़ावा दे रहे थे । फिर कुछ देर बाद प्लेन
शांत हुआ तो हमारे करेजे में ठंडक आयी – 
हम पटना को खिड़की से देखा तो बड़े-बड़े बिल्डिंग हैं वो छोटे छोटे कार्टून के
तरह दिख रहे थे। कुछ देर बाद प्लेन मे हमें खाने के लिए मिला पर जो मैडम खाना दे
रही थे और वो जो बोल रहे थे हमे सुनाई नहीं दिया और मैं उनके पास मैगी देखा वही
मांग लिया
|  फिर जब
हम लोग हैदराबाद उतरे तो हमें लगा कि पटना का 5 एयरपोर्ट को मिला दे तो हैदराबाद
का एयरपोर्ट वैसा लगेगा
| हैदराबाद में हम लोग का फिर सारा
प्रक्रिया हुआ वहां एयरपोर्ट पर सामान खाने के लिए होटल और शराब का भी दुकान था
,
एक चीज़ नहीं समझ आया की क्या दारू पी कर परमिशन है एयरोप्लेन में
बैठने का
? हमारी टीम वहाँ एयरपोर्ट में फोटो खींच आए,
इस पल को देखकर बार-बार याद किया जा सकता है | हैदराबाद से फिर हम लोग फ्लाइट में बैठे और आखिरकार में और हमारी पूरी टीम
गोवा पहुँच गयी
| मैं ज्यादा तो नहीं जानता हूं गोवा के बारे
में जरूर सुना था
, मैं एक व्यक्ति का हमें नाम किया था जो कि
वह व्यक्ति अब इस दुनिया में नहीं है और वो गोवा के लोगों के दिलों में बसते थे और
इसी कारण गोवा के सीएम बने और सीएम के कार्यकाल के दौरान ही मृत्यु हो गया – मनोहर
पारिकर नाम था उनका
, मीडिया के माध्यम से सुना था | एयरपोर्ट पर गाड़ी खड़ी थी और वहां से हम लोग पंजिम गए | जहाँ हम लोगों को रुकना था उस अपार्टमेंट का नाम था – ब्लू व्हले और वहां
हमें एक बुकवर्म का बैनर दिखा
| एयरपोर्ट से पणजी की दूरी
लगभग 25 किलोमीटर था
| हम लोग रूम के अंदर गए, व्यवस्था देख कर मैं आश्चर्यजनक रह गया था और वहां 9 लोग को रुकने का
व्यवस्था था
|  ख़ास
बात यह था की हर बेड पर एक बंडल रखा था और सारे के सारे बंडल पर नाम लिखा था कि
कौन किसका बैड है जब मैं बंडल खोला तो वह सारा वस्तु उसमें था जो कि एक इंसान को
रात में सोने से लेकर सुबह उठने के बाद की सारी जरूरत की सामग्री थी
| उस फ्लैट में किचन भी था – उसमें भी नाश्ता से लेकर रात्रि के भोजन के
सामान का इंतज़ाम किया हुआ था
|  इतना केयर तो हमारे भी परिवार में कोई आता है तो हम नहीं करते हैं जितना
वहां इन्तंज़ाम किया हुआ था
| उस अपार्टमेंट में ६ फ्लैट था,
4 लोग पहले से रह रहे थे और पांचवा में हम लोग गए थे, छठा खाली था, बाहर से ताला बंद था पर एक चीज समझ
नहीं आया कि हमारे भी रूम में पानी वाला पंप का स्विच था
| क्या
पता वहां अलग-अलग पंप लगा था
| फिर हम लोग वहां से खाना खाने
गए
| फिर हम लोग सुबह तैयार हुए और बुकवर्म के लिए निकल गए |
बुकवर्म का बिल्डिंग बाहर से दिखने में ही आकर्षित था लेकिन जब मैं
गेट के अंदर कदम रखा तो ऐसा स्वागत किया गया कि क्या बताऊं मेरे शब्द कम पड़
जाएंगे
|  हमें समझ
नहीं आया कि मैं क्या कहूं
, हम लोग का स्वागत हुआ और जब हम
वहां का लाइब्रेरी देखन तो हमारी  आंख खुली
की खुली रह गई
| मैं उतना बड़ा, उतना
सुंदर
, उतना आकर्षित, इतना अच्छे अच्छे
लोग नहीं देखा था
| उनकी सारी किताबें जो लग रही थी बोल
पड़ेंगे
| वहां पर हम जिन जिन व्यक्ति से मिले मैं उनका नाम
बताता हूँ
| सारे लोगों का नाम तो नहीं पता पर सारे लोगों का
स्वभाव और अच्छाई हमारे दिल में बसा
| 
मैं कुछ ही को नाम से जान पाया क्यूंकि वहां का नाम भी हमारे
भाषा से उल्टा था – सुजाता दीदी
, नयन दीदी, अनंदिता दीदी, सीशा दीदी, इलीना
दीदी और लोगों का नाम हमें याद नहीं पर उनका चेहरा हमारे दिलों और दिमाग में फोटो
की तरह छप गया है।

 

    

फिर
हमें दो ग्रुप में बांटा गया और हमें लाइब्रेरी का सैर कराया गया और वहां की
किताबों से परिचय कराया गया
| परिचय के पश्चात हमें ट्रेज़र
हंट के माध्यम से किताबों से मिलाया गया
| इस तरह से क्लू था कि सारे
किताब को बिना खोले कोई क्लू नहीं मिल सकता है
, इस प्रकार से जोड़ा गया था जो
कि हमारे लिए अद्भुत था
|

फिर हम
लोग छत पर गए, वहां एक कोने में बोर्ड रखा हुआ था पता जो कि हमारे आने से जाने
तक का समय
, कार्य का सूची/ योजना बनाया गया था | 
उसी के आधार पर सारा के सारा कार्य को आगे बढ़ाया
जा रहा था
| इसी कार्य के दौरान हमें मालूम चला कि बुकवर्म की बिल्डिंग 115
साल पुरानी थी
, जानकर हम दंग रह गए कि पहले के इंजीनियर आज के इंजीनियर से
कितना ज्यादा समझदार और टैलेंट था उनमें क्योंकि जिस तरह आज आधुनिक समय में हमारा
देश आगे है उसके बाद भी उस तरह का स्ट्रक्चर नहीं खड़ा हो सकता है
| 115 साल
मामूली बात है
??? फिर हम लोग का सेशन शुरू हुआ, पहले परिचय किया गया फिर हम
लोग को एक-एक थैला मिला जिस पर सिलाई करना था। एक छोटा बैग मिला जिसमें सीने से
पढ़ने तक का सारा सामग्री मौजूद था। फिर हम लोग का 06/12/2021 का सेशन शाम के 6
बजे कंप्लीट हुआ। उसी दौरान हमें चाय
, नाश्ता, खाना
सारा चीज समय के साथ कराया गया। लेकिन वहां के खाना
, नाश्ता, चाय भी
हमारे यहां से अलग था। हमारे यहां के लोग तीखा खाना पसंद करते हैं। और वहां के लोग
मीठा खाना पसंद करते हैं। मीठा के अर्थ की खीर नहीं वहां नारियल के तेल या नारियल
के बुरादा ज्यादा उपयोग किया जाता था
|  पहला दिन सत्र के पश्चात हम लोग को एक होमवर्क मिला जो कि कल
हमें वहां पर
पोंगलनाम के किताब के बारे में बोलना था। हमारी टीम में 2 लोग थे –
एक विनीत जी और दूसरा मैं। सत्र खत्म होने के बाद फिर हम लोग घूमने और खाना खाने
के लिए बाहर निकले और पहला दिन समाप्त।

सत्र का
दूसरा दिन फिर सुबह उठकर नहाकर तैयार होकर बाहर जाकर नाश्ता किया
| वहां
नाश्ते में यहां की तरह जलेबी कचोरी नहीं मिलता था
, वहां पर मिलता था, इडली, मसाला
डोसा यही सब इत्यादि नाम भी हमें नहीं पता है। फिर हम लोग बुकवर्म में गए वहां पर
सत्र चालू हुआ
| हम लोग पिछले दिन का अपना अनुभव शेयर किये और उसके बाद जो हमें
किताब पर 5 मिनट बोलना था उस पर चर्चा शुरू हुआ और बारी-बारी से सभी टीम अपना-अपना
किताब के कहानी के बारे में बहुत अच्छे से रखने का प्रयास किया
|  

पर जब
हमारी बारी आई तो मैं और विनीत जी गए और बोलना शुरू किया। एक शब्द जो कि हमारे
सारे कामों को बर्बाद कर दिया वह शब्द था परंपरा। अभी
हमारी शब्द के चुनाव में गलती हुआ और सारा का सारा मेहनत बेकार हुआ। इसलिए कहा गया
है कि डिग्री से काम नहीं होता
, आज के समय में डिग्री और ज्ञान
दोनों की जरूरत है। आज भी हमें और आने वाले हमारी जिंदगी से जितना भी समय/ दिन है
मैं यह शब्द नहीं भूल सकता (परंपरा) क्यूंकि हमारी किताब पर पहला यात्रा था। सारा
कुछ लगभग ठीक-ठाक जा रहा था लेकिन यह शब्द हमारी खुशी में एक हादसा सा बन गया। पर
क्या कर सकते हैं कहा गया है- कि इंसान कोट पैंट पहनकर बुद्धिमान नहीं बन सकता है
और फटा पुराना पहनकर बेवकूफ नहीं होता। देखने में दोनों में अंतर जरूर दिखता है पर
जब बात शिक्षा की आती है तो पर्दा उठने में देर नहीं लगता । यही हाल मेरे साथ हुआ
मैं ठहरा एक ड्राइवर वो टैक्सी जिसको बात भी ज्यादा करने का सलीका मालूम नहीं है।
हाथ में किताब पकड़ कर मैं एक लाइब्रेरियन होने का प्रयास कर रहा था। पर वहां जो
लोग थे कोई हमारी तरह थोड़ी
यह-वहथा।
रियल के उनका नॉलेज था वह हमारी बातों को पकड़ लिए जिसके लिए हमें बुरा नहीं लगा।

 

हमें
अफ़सोस जरूर हुआ क्योंकि बुकवर्म टीम हमारी टीम पर लगभग 8 माह से काम कर रही थी।
उनका प्रयास कि हम अपनी समझ को विकसित करें मैं अपनी सोच को बदलूँ
, मैं
किताब की गहराई तक जाऊं
, लेकिन मैं सफल नहीं हो सका और मैं अपने साथ उनका भी मनोबल गिरा
दिया। क्योंकि जो व्यक्ति रात दिन अपना महत्वपूर्ण समय आप पर खर्च कर रहा हो उसके
बाद भी अगर कोई परिवर्तन नहीं होता है तो मन में और दिल मे बुरा लगता है। हमारे
समझ से यहां दो बात आती है (1)
, या तो मैं उनको बदलने/ समझने
लायक नहीं हूं (2) कि मैं समझाना ही नहीं चाहता हूँ । तो सुजाता दीदी हम (2) नंबर
वाले हैं आपकी कोई गलती नहीं हमने आपको ठेस पहुंचाया । आपकी मेहनत बहुत लगन और
विश्वास के साथ था और मैं आपके लगन और विश्वास पर पानी फेरा है। आपका कोई कसूर
नहीं है। हमारे यहां एक कहावत है कि- बेंग के पांव में घोड़ा का नाल ठोकने से वो
घोड़ा नहीं बन सकता है। और सुजाता दीदी परंपरा को आप ट्रेडीशन कहते हैं। आप उदाहरण
दिए थे कि हम दिवाली
, होली ,पूजा पाठ जो करते हैं वह परंपरा है, जाति
परंपरा नहीं है। और दीदी हमें लगता है कि जो दिवाली
, होली, पूजा
पाठ का परंपरा बनाया है
, वही जाति का भी परंपरा चला आया है। और जो हमें खुशियां देती है
उसे हम कुबूल करते हैं। और जो हमें तकलीफ देती है उसे नकार देते हैं। क्योंकि जाति
भी दिवाली की तरह जन्मो जन्मांतर से चला आ रहा है। दिवाली कब शुरू हुआ हमें पता
नहीं है
, होली कब शुरू हुआ हमें पता नहीं उसी प्रकार जातिवाद कब शुरू हुआ
वह भी हमें नहीं पता।
हमने भगवान से नहीं कहा कि हमें ऊंची जाति में
भेजिए और दूसरे को नीची जाति में। मैं जन्म लिया इंसान के रूप में और बड़ा  हुआ तो पता चला कि हम ऊंची जाति में हैं और
हमारा धर्म धर्म हिंदू है। मैं दिवाली मना सकता हूं
, मैं होली मना सकता हूं। पर मैं ईद नहीं मना सकता क्योंकि यह परंपरा
है। मैं मानता हूं कि मैं अभी गलत हूं
, हमारी सोच सीमित होकर रह गई। लेकिन मैं अपने आप में और आज तक के
जीवन में मैं अभी तक किसी से किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया है। क्योंकि बचपन
नानी के यहां गुजारा और वहां हम दुसाध के यहां भी खाना खाया था। और जब 2003 में
अपने गांव गया तो मुझे कुछ बताया गया और हमें जात पात का ज्ञान दिया गया परिवार से
कि किसके साथ रहना है
, और किसके साथ नहीं रहना
चाहिए। उसके बाद भी हमारी जाति का कोई मित्र नहीं बना। हमारा अपनी जाति से आज तक
भी नहीं बनता है। हमारा जितना भी दोस्त रहा बचपन से अभी तक वह ओ.बी.सी है या  एस.सी है। हमारे जीवन में एक सूर्या सर जो जनरल
में आते हैं और मैं उनका सम्मान करता हूं। ऐसा इसलिए नहीं कि मैं प्रयोग में हूं
, जिस समय मैं सर से जुड़ा था उस समय प्रयोग का जन्म
भी नहीं हुआ था और हमें लगता है कि सभी उस समय प्रयोग के बारे में नहीं सोचे होगे
। और फिर इसी तरह दूसरा सत्र का दिन खत्म हुआ।

 

हम लोग रोज की तरह तीसरे
दिन भी बुकवर्म में पहुंचे
| हमारी
जो कल की गलती थी उस पर सुजाता दीदी ने (पोंगल) किताब के लेखक बामा के जीवन से
जुड़ी एक किताब दी और बोले हिंदी में ट्रांसलेट करके पढ़ो
|  मैं
पढ़ा और जाना की बामा जी ऐसे किताब क्यों लिखें। सत्र के दौरान ही दूसरा दिन हमें
नयन दीदी के पति से मिलने का मौका मिला। हमारा सौभाग्य था कि वह अपने काम के लिए 8
दिन के लिए गोवा आए थे। सत्र के दूसरा दिन ही हमें सुजाता दीदी के पति से भी मिलने
का मौका मिला था। वह एक डेंटिस्ट है और वे बहुत खुले पन्ने के तरह इंसान है। क्यों
लगा यह मैं आगे बताऊंगा। सत्र का तीसरा दिन हमें दूसरे दिन में एक बुक डिस्प्ले
लगाने का कार्य मिला था। और लंच के पहले ही हम लोग डिस्प्ले लगाने का काम शुरू कर
दिया था। उसमें हमारी फोकस रहा हमारा डिस्प्ले
दोस्तीथीम के ऊपर आधारित था।
टीम में मैं
, अनीता जी, कैलाश जी और आलोक जी थे।

      

दोस्ती का चयन हमारा ही
था। और उस पर किताब को हम सभी ने मिलकर खोजा और एक साथ मिलकर हम लोगों ने कार्य
किया। हम लोग अपना भरपूर योगदान दिया डिस्प्ले को खास बनाने में। उसके बाद लंच हुआ
और फिर उसके बाद कुछ चर्चा हुआ और हमें एक समुदाय लाइब्रेरी देखने का मौका मिला।
समुदाय लाइब्रेरी में भी जाने के लिए 2 टीम बना और मेरी टीम में मैं
, आलोक जी, दुर्गा जी और विनीत जी थे। हमने एक पहाड़ के सटे गांव में गया और
वहां बीच यानी समुद्र के किनारे हमारा सत्र चला। हमारे सत्र में 9 बच्चे थे। और
हमारा सत्र ठीक-ठाक चला। सत्र का चलाने का कार्यभार शीषा दीदी और एक और दीदी थे
जिनका नाम हमें याद नहीं है। सत्र अच्छा रहा सत्र के बाद हम लोग अपने किताबों के
घर बुकवर्म के यहां आ गए। और तब तक 6:30 हो चुका था और हम सारे लोग को अपना घर
जाना था। तो सुजाता दीदी के पति जिनका नाम तो हमें याद नहीं आ रहा है
, लेकिन कुछ कुछ याद है फेंडी या हाँ, फर्डी था उनका नाम। फिर हमारी पूरी टीम उनके साथ
दो गाड़ी में गया। एक को खुद चला रहे थे और दूसरा चलाने का मौका हमें मिला । मैं
गोवा में गाड़ी चलाया। थोड़ा ही दूर चलाया वहां का भीड़ पता ही नहीं चलता। एक शांत
गाड़ी आ रही है जा रही है पर एकदम शांत हमारे यहां जैसे पें -पा टें- टा नहीं
ज्यादा सुनाई पड़ता है। हम लोग उनके साथ एक बीच में गए हालांकि रात हो चुकी थी फिर
भी वह हमें घुमाने ले गए।

यह बहुत बड़ी बात है
हमारे लिए हम लोग से बात भी कर रहे थे। और हमने फोटो भी खिंचवाई उनके साथ फिर हम
लोगों को एक क्लब में ले गए
, वह
कहते हैं मैं यहां 1995 से मेंबर हूं। उस क्लब को देखना हमारे लिए दूर की बात थी
पर अंदर ले गए वहां हम लोग साथ में खाना भी खाया और खास करके मैं पर्सनल खुद भी
उनसे बहुत बात किया
| यह हमारे जीवन काअद्भुत
पल था। इसलिए हम उनके बगल वाले कुर्सी पर बैठे थे। शुरू में तो मैं हिचकिचाया पर
फिर भी मैं उनसे बात किया और सबसे बड़ी बात यह है कि जो व्यक्ति अंग्रेजी में बात
करते हैं
, घर पर, ऑफिस में, सारे जगह पर वह हमसे हिंदी में बात कर रहे थे और सबसे ज्यादा
ताज्जुब की बात यह है कि वह हमारे भाषा को समझ रहे थे और उसका उत्तर भी हमारी भाषा
में दे रहे थे। जिस तरह से मैंने उनके बारे में सूर्या सर से सुना था उनके रहन-सहन
के बारे में तो मैं कल्पना भी नहीं कि वे पर्सनल हमसे बात करेंगे उनका तो छोड़िए
सोचता था कि मैं उनके सामने कुछ बोल पाऊंगा
| फिर बातचीत के दौरान मैं उनके साथ अपनी समस्या
को भी शेयर किया। उनका बड़ा आसान और प्यारा सा जवाब था कि प्रयास करने से सब कुछ
संभव है। ठीक आप दूर रहे हो पढ़ाई से पर अब तो कर रहे हो
, तो अभी शुरू करो। इस तरह हम लोग का तीसरा दिन
समाप्त हो गया और हम लोग स्थान पर आ गए। सूर्य सर उसी दिन क्लब से ही हम लोग का
साथ छूट गया था। वो उसी रात पटना के लिए निकल गए थे। उनका गोवा एयरपोर्ट से 2:10
रात में फ्लाइट था ।  

 

फिर सत्र का चौथा और
आखिरी दिन आया और हम लोग रोजाना की तरह सुबह तैयार होकर
8:45 में
बुकवर्म पहुंच गए और हमारी सत्र चालू हुआ। हम लोग अपने-अपने
3 दिनों
का अनुभव शेयर किया और फिर जो हम लोग समुदाय लाइब्रेरी में गए थे उसका भी फीडबैक
और अनुभव को शेयर किया। इसके बाद हमलोगों को टीम (
1) और टीम
(
2) दोनों को एक दूसरे की डिस्प्ले को जाकर देखने को
कहा गया। और वहीँ लगा था उसका हम लोगों ने भ्रमण किया। उसके बाद हम लोग एक दूसरे
का फीडबैक दिया और लिया
, सीखा की क्या काम करना चाहिए, कैसे किया और कैसे करना
चाहिए। उस पर चर्चा हुआ और इसके बाद और हमारा सत्र खत्म हो गया और हमारी टीम की
कुछ साथी घूमने चले गए और मैं
, विनीत जी और कैलाश जी
लाइब्रेरी में जाकर किताब पढ़ने लगे
, नया किताब लेने के ख्याल
से।

फिर कुछ देर बाद सुजाता
दीदी आई और हम लोगों से कुछ बात करने लगी। बात निकला जातिवाद पर उनका कहना था कि
वे जाति पर रिसर्च कर रही हैं
, तो हमसे जाति पर कुछ बात
करना है। और हम लोग तैयार हुए और चर्चा शुरू हुई। एक कैटेगरी बना मुख्य जाति के
बारे में लिखा गया कि नंबर एक पर कौन आते हैं। दो नंबर पर कौन आते हैं इसी प्रकार
एक सूची बना पर कहूं तो-

GEN मे भी 4/5 जाति
है
, OBC -1, OBC -2, SC,
ST

फिर इस पर दीदी और हमारे
साथी का खूब चर्चा हुआ और लास्ट यही हुआ कि बातचीत करने का पता चल जाता है कि कौन
क्या है।  अगर मैं जनरल नंबर पर आता हूं तो
मेरा क्या कुसूर है। अगर बात आम की है तो इसमे मैं क्या कर सकता हूं। दीदी इसमें
मैं क्या करूं
? सामने वाले को कभी छोटा या नीचा नहीं देखता मैं ऐसा करने का कल्पना
भी नहीं कर सकता। पर हमें लगता है कि मैं सफाई कितना भी दूँ मैं अपने आप को
GEN
से ST मे नहीं ला सकता। यह मेरा अधिकार में नहीं है।
इसीलिए तो हमने एक शब्द बोला था परंपरा जोकि सारी मेहनत पर पानी फेर दिया। यह
हमारी समझ से परंपरा ही तो है। कि मैं अपना धर्म चेंज कर सकता हूं पर जाति नहीं
,
क्यों ? ऐसा क्यों है कि मैं जाति चेंज नहीं कर सकता?
हमें कोई जवाब दे सकते हैं। इस चर्चा के बाद हम लोग भी अपने फ्लैट
पर गए। वहां से कुछ देर बाद थोड़ा देर के लिए घूमने गया उसी रात हमारी फ्लाइट थी।
2:10
am
में तो हम लोग और हमारी टीम के सारे साथी जमा हुए। लगभग 11:00
p.m 
में टैक्सी पर बैठकर लगभग
12:00 बजे गोवा एयरपोर्ट पर आ गए। पटना वापस आने के
लिए और जिस तरह फ्लाइट में डरते गया था लेकिन उधर से फ्लाइट में अपने अपने घर को
प्रस्थान किया गोवा टू पटना की यात्रा समाप्त हुई।

मेरे लिए यह ज़िन्दगी का
सबसे बढ़िया अनुभव रहा है जिसे हम आखिरी सांस तक याद रखेंगे
|

 

 नोट: यह ब्लॉग प्रयोग के नए साथी, विश्वनाथ कुमार उर्फ़ टिंकू द्वारा लिखा गया है और इसे हूबहू टाइप कर दिया गया है | टिंकू 18 साल के उम्र से ही ड्राइवर के रूप में काम करने लगे थे और प्रयोग से इनका जुड़ाव तबसे रहा है जब प्रयोग की शुरुआत 2013 में हुई थी पर किताबों की दुनिया की उनकी सैर 2021 में बुकवर्म के साथ हुई चर्चा एवं कार्यशालाओं के दौरान शुरू हुआ | प्रयोग टीम इसके लिए बुकवर्म की सदा आभारी रहेगी | 

 

 

 

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