पान्डेमिक के दौरान लाइब्रेरी के कुछ प्रयास और ‘प्रयोग’ के अनुभव
पिछले 4 महीने हम सभी के लिए चुनौतीपूर्ण रहा है और ऐसा
कई बार हुआ जो हमें कुछ सोचने के लिए मजबूर किया: क्या विकास के जो ढकोसले हम
पिछले कई वर्षों से पूरे विश्व और भारत में सुनते आ रहे थे, वो एक दिखावा नहीं था? क्या बीते 4 महीनों ने हमें
यह नहीं दिखा दिया की ‘समता‘ का जो मुखौटा है वह केवल पढ़ने सुनने के लिए है?
बच्चों की बात करें तो क्या कोई भी सटीक तरीका
अपनाया गया की हम उनके मन में उठ रहे डर या जिज्ञासा या उतावलेपन को लेकर उनके साथ
बात कर सकें? क्या पढ़ाने के लिए ऑनलाइन
जरिया का ही इस्तेमाल हो सकता था? कितने बच्चों के
पास ऑनलाइन पढ़ने के लिए मौलिक सुविधाएँ या संसाधन भी हैं? ऐसे कई सवाल हमारे मन में भी कौतुहल कर रहे थे और हमने
बच्चों के साथ अपने लाइब्रेरी के सफर को जारी भी रखा और हमने कुछ चीज़ों को सीखते
हुए अपने तरीके में परिवर्तन भी किया |
कई बार हुआ जो हमें कुछ सोचने के लिए मजबूर किया: क्या विकास के जो ढकोसले हम
पिछले कई वर्षों से पूरे विश्व और भारत में सुनते आ रहे थे, वो एक दिखावा नहीं था? क्या बीते 4 महीनों ने हमें
यह नहीं दिखा दिया की ‘समता‘ का जो मुखौटा है वह केवल पढ़ने सुनने के लिए है?
बच्चों की बात करें तो क्या कोई भी सटीक तरीका
अपनाया गया की हम उनके मन में उठ रहे डर या जिज्ञासा या उतावलेपन को लेकर उनके साथ
बात कर सकें? क्या पढ़ाने के लिए ऑनलाइन
जरिया का ही इस्तेमाल हो सकता था? कितने बच्चों के
पास ऑनलाइन पढ़ने के लिए मौलिक सुविधाएँ या संसाधन भी हैं? ऐसे कई सवाल हमारे मन में भी कौतुहल कर रहे थे और हमने
बच्चों के साथ अपने लाइब्रेरी के सफर को जारी भी रखा और हमने कुछ चीज़ों को सीखते
हुए अपने तरीके में परिवर्तन भी किया |
1. ‘चलो पढ़ें‘:
20 मई – 20 जून तक
20 मई – 20 जून तक
हमारा अनुभव कहता है कि
बच्चों को कहानियां पसंद हैं और लॉकडाउन अवधि में 10 से 15 वर्ष की आयु के
बच्चों के लिए एक ‘स्टोरी रीडिंग
इवेंट ‘ शुरू किया और उनके लिए
प्रोत्साहन भी सुनिश्चित किया। एक महीने की अवधि में 15 अनूठी कहानियों को व्हाट्सप्प के माध्यम से साझा किया गया
जो हमने अरविन्द गुप्ता टॉयज वेबसाइट से पढ़ कर और चर्चा कर चुना था | हमने कभी नहीं सोचा था कि यह 10 जिलों: बिहार के पटना, मुजफ्फरपुर, पूर्वी चंपारण,
पश्चिम चंपारण, सीवान और गोपालगंज और UP के बहराइच, बलरामपुर,
लखनऊ और गाजियाबाद में बच्चों तक पहुंचेगा। 88 बच्चों ने इसमें हिस्सा लिया और इनमे से 48 नियमित रूप से डिज़ाइन किये गए गतिविधियों के
द्वारा हमारे साथ एक्टिव रहें | यह उनके
माता-पिता के समर्थन के बिना संभव नहीं था और कुछ माता-पिता वास्तव में हमें जवाब
दे रहे थे की “इस पहल के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, यहां तक कि मुझे आज पता चला कि मेरा बच्चा इस
तरह सोच कर जवाब दे भी सकता है”।
बच्चों को कहानियां पसंद हैं और लॉकडाउन अवधि में 10 से 15 वर्ष की आयु के
बच्चों के लिए एक ‘स्टोरी रीडिंग
इवेंट ‘ शुरू किया और उनके लिए
प्रोत्साहन भी सुनिश्चित किया। एक महीने की अवधि में 15 अनूठी कहानियों को व्हाट्सप्प के माध्यम से साझा किया गया
जो हमने अरविन्द गुप्ता टॉयज वेबसाइट से पढ़ कर और चर्चा कर चुना था | हमने कभी नहीं सोचा था कि यह 10 जिलों: बिहार के पटना, मुजफ्फरपुर, पूर्वी चंपारण,
पश्चिम चंपारण, सीवान और गोपालगंज और UP के बहराइच, बलरामपुर,
लखनऊ और गाजियाबाद में बच्चों तक पहुंचेगा। 88 बच्चों ने इसमें हिस्सा लिया और इनमे से 48 नियमित रूप से डिज़ाइन किये गए गतिविधियों के
द्वारा हमारे साथ एक्टिव रहें | यह उनके
माता-पिता के समर्थन के बिना संभव नहीं था और कुछ माता-पिता वास्तव में हमें जवाब
दे रहे थे की “इस पहल के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, यहां तक कि मुझे आज पता चला कि मेरा बच्चा इस
तरह सोच कर जवाब दे भी सकता है”।
हम यहाँ उन्हें diverse
कहानियों से रूबरू कराने का प्रयास कर रहे थे
जो उन्हें उनके आस पास की दुनिया को समझने और सोचते रहने में उनके सहयोगी बन सकें |
कहानियों से रूबरू कराने का प्रयास कर रहे थे
जो उन्हें उनके आस पास की दुनिया को समझने और सोचते रहने में उनके सहयोगी बन सकें |
2. खेम मटिहनिया
गाँव में सामुदायिक लाइब्रेरी: 10 जुलाई से शुरू
गाँव में सामुदायिक लाइब्रेरी: 10 जुलाई से शुरू
खेम मटिहनिया, गंडक नदी के किनारे बसा हुआ गाँव है (गोपालगंज
जिला, बिहार) और हर साल बाढ़ से
प्रभावित होता है – यहां के सरकारी विद्यालय में हमारा लाइब्रेरी सत्र पहले से
चलता आ रहा था लेकिन लॉकडाउन में सभी विद्यालय बंद हैं | जब हम वहां गाँव में जाकर बच्चों से बात करना चाहे तो वहीँ
के समुदाय, ख़ास कर माताओं से यह
डिमांड हुआ की हम बच्चों को कुछ किताबें पढ़ने के लिए दें और इसके लिए गाँव से ही
एक व्यक्ति ने अपने घर से इसके सञ्चालन के लिए तुरंत जगह भी दे दिया |
जिला, बिहार) और हर साल बाढ़ से
प्रभावित होता है – यहां के सरकारी विद्यालय में हमारा लाइब्रेरी सत्र पहले से
चलता आ रहा था लेकिन लॉकडाउन में सभी विद्यालय बंद हैं | जब हम वहां गाँव में जाकर बच्चों से बात करना चाहे तो वहीँ
के समुदाय, ख़ास कर माताओं से यह
डिमांड हुआ की हम बच्चों को कुछ किताबें पढ़ने के लिए दें और इसके लिए गाँव से ही
एक व्यक्ति ने अपने घर से इसके सञ्चालन के लिए तुरंत जगह भी दे दिया |
प्रयोग टीम ने बच्चों से
ही राय लिया की इसके लिए बिना भीड़ लगे कैसे लाइब्रेरी की दो मुख्य कार्य किया जा
सके: डिस्प्ले और लेंडिंग | इस गाँव में ही 200 से ज़्यादा बच्चे हैं और हमें यह भी सुनिश्चित
करना था की बच्चे जब किताब चुनने या लेने आये तो उस स्थान में एक समय पर 25 से 30 ही हो ताकि फिजिकल दूरी
बने रहे | उन्होंने ही अपने कक्षा
के अनुसार एक रोस्टर बना दिया और हम उस रोस्टर में तय दिन और समय पर लाइब्रेरी
स्थल पर जाते हैं और किताबों का लेन – देन करते हैं | हमने हर कहानी के लिए एक वर्कशीट भी बनाया है जिसमे बच्चा
पूछे गए सवाल को लिख कर या चित्र बना कर या दोनों ही तरीके से भर कर हमें वापस
देते हैं |
ही राय लिया की इसके लिए बिना भीड़ लगे कैसे लाइब्रेरी की दो मुख्य कार्य किया जा
सके: डिस्प्ले और लेंडिंग | इस गाँव में ही 200 से ज़्यादा बच्चे हैं और हमें यह भी सुनिश्चित
करना था की बच्चे जब किताब चुनने या लेने आये तो उस स्थान में एक समय पर 25 से 30 ही हो ताकि फिजिकल दूरी
बने रहे | उन्होंने ही अपने कक्षा
के अनुसार एक रोस्टर बना दिया और हम उस रोस्टर में तय दिन और समय पर लाइब्रेरी
स्थल पर जाते हैं और किताबों का लेन – देन करते हैं | हमने हर कहानी के लिए एक वर्कशीट भी बनाया है जिसमे बच्चा
पूछे गए सवाल को लिख कर या चित्र बना कर या दोनों ही तरीके से भर कर हमें वापस
देते हैं |
हमने दोनो ही तरीको को
आज़मा कर देखा लेकिन जो मज़ा आमने सामने किताब को देने और लेने में है, उसकी बात ही कुछ और है | एक बात तो पक्का है – इस वक़्त बच्चों के पास कहानियों की
कमी है, स्कूल एजुकेशन प्रणाली ने
कहानी के किताबों को तवज्जु नहीं दिया और घर पर भी इसके लिए माहौल बनाने का कोई
प्रयास नहीं किया गया | पर जो रिस्पांस
हमें बच्चों, उनके शिक्षकों और
अभिभावकों से मिला, उससे इतना तो पता
चला की लाइब्रेरी एडुकेटर के रूप में यह हम सभी के लिए सबसे मज़ेदार समय भी है!
आज़मा कर देखा लेकिन जो मज़ा आमने सामने किताब को देने और लेने में है, उसकी बात ही कुछ और है | एक बात तो पक्का है – इस वक़्त बच्चों के पास कहानियों की
कमी है, स्कूल एजुकेशन प्रणाली ने
कहानी के किताबों को तवज्जु नहीं दिया और घर पर भी इसके लिए माहौल बनाने का कोई
प्रयास नहीं किया गया | पर जो रिस्पांस
हमें बच्चों, उनके शिक्षकों और
अभिभावकों से मिला, उससे इतना तो पता
चला की लाइब्रेरी एडुकेटर के रूप में यह हम सभी के लिए सबसे मज़ेदार समय भी है!
जेंडर आधारित भेद भाव और महिला के मज़बूत आवाज़ ने इस बच्ची को इतना मन्त्रमुग्ध किया की उसने कहानी में दर्शाये हुए चित्र को अपने तरीके से बना डाला |
बेहतर प्रयत्न! Challenges are a part of life.How you deal with it, that is what makes you different. I am your sure your initiative will benefit all spectrum of society. Keep it up!!!
This is Randhir Sahay.
Keep going
Wonderful Modus operandi during lockdown period
बहुत बढ़िया प्रयास
Extremely fulfilling! कमाल की यात्रा सूर्या!
This comment has been removed by the author.
Indeed Sir! Thank you so much for your motivation throughout and we are facing numerous challenges on daily basis. Both Binit and Kailash are implementing this carefully and beautifully!
Thank you Sir, these are tough and testing times but the enthusiasm of children has kept us motivated and this was not possible without the ground team working hard on it..we will keep moving on through the lessons we learn each day in this journey!
Thanks!
This is beautiful work Prayog is doing. And the response from the children and community you are getting is not only encouraging for you but inspiration to us as well that actually there is no term called impossible it depends on us how we are taking it. Lovely
All of us do not have equal talent. But , all of us have an equal opportunity to develop our talents. (Dr Kalam)
Here Prayog is helping to provide equal opportunity to those who are contretemps.
Fantastic job Mr Surya and Prayog