शिक्षकों के साथ ‘बुक डिस्प्ले’ पर मेरा अनुभव
बच्चों के लिए तो किताबों का डिस्प्ले बहुत बार लगाया था, लेकिन जब बात शिक्षकों की आई की मुझे शिक्षकों के लिए ‘Book Display’ लगाना होगा तो मुझे बहुत डर लगा | मैं तो बहुत प्रयास किया की यह ना हो, मन में बहुत सी नकारात्मक बाते लेकर मैंने इस कार्य को शुरू किया क्योंकि अंदर ही अंदर बहुत डरा हुआ था |
“क्या यह मैं कर पाऊँगा ?” – मेरे दिल और दिमाग में बस यह सवाल ही था |
08 जनवरी 2020 को ‘उत्क्रमित मध्य मध्य विद्यालय शेरपुर’ में डिस्प्ले लगाने निकल पड़ा | वहां के प्रधानाध्यापक से पहले ही चर्चा कर लिया था की आपके ऑफिस में मैं एक डिस्प्ले लगाना चाहता हूँ और उन्होने बहुत ही उत्साह के साथ मुझे ‘हाँ’ कहा था |
पहला डिस्प्ले लगा, जिसका विषय था “महिलाओं की आवाज” | डिस्प्ले लगाया और चार किताबों का बूक टॉक किया – “मितवा”, “काश मुझे किसी ने बताया होता”, “क्यों क्यों लड़की”, “स्त्री पत्र” | 20 मिनट का समय मिला था और वह समाप्त हो रहा था | मैं वहाँ पर 10 नोटबूक और पेंसिल रख दिया | उसके बाद उन्होंने मुझसे एक प्रश्न किया जिसका मुझे पहले से ही डर था– “क्या अब हमलोग भी पढ़ेंगे ? कोई नया अभियान आ गया क्या ?” मुझे पता था की यह प्रश्न जरूर आयेगा, इसलिए मैंने अपना उत्तर तैयार रखा था, मैंने कहा की पुस्तकालय की कुछ किताबें रख रहा हूँ, अगर समय मिले तो इन किताबों को आप देख सकते हैं की यह हमारे पुस्तकालय में रहे या नही | उसके बाद सत्र समाप्त हुआ और मैं प्रधानाध्यापक और शिक्षकों को धन्यवाद दिया |
‘महिलाओं की आवाज’ theme पर Book display, 08 जनवरी |
बिनीत द्वारा “क्यूँ क्यूँ लड़की” पर Book Talk, 08 जनवरी |
बिहार में ठण्ड बहुत पड़ रही थी और विद्यालय शीतलहर के कारण 11 दिनों के लिए बंद हो गया | मन ही मन सोचा की अब काहे को कोई किताब पढ़ेगा, डिस्प्ले वैसा ही लगा रह जायेगा | 20 जनवरी 2020 को विद्यालय खुला और मैं दूसरा ‘डिस्प्ले’ लगाने के लिए कुछ किताब उठाया और चल दिया | जैसे ही स्कूल पहुँचा और बाइक से उतरा वैसे ही मीना मैडम आई और बोली – “इतना पतली नोटबूक क्यों रखे थे ? मैंने तो पूरा भर दिया है |” मैं कुछ समझता की प्रधानाध्यापक जीतेन्द्र सर से मिला, और उन्होंने कहा की आपका कार्य सफल रहा – “स्कूल में बच्चे नहीं आ रहे थे लेकिन हमलोग आ रहे थे, मैंने देखा की सभी लोग किताब पढ़ रहे है | टेबल पर तो बहुत ही कम किताब बचती सब लोग जारी करके किताब घर ले जाते |” – यह सुनकर मैं बहुत खुश हुआ |
लंच के समय सभी लोग बैठे, मैं दूसरा डिस्प्ले लगा रहा था, सबको नमस्कार किया और चर्चा शुरू किया | धर्मनाथ सर ने कहा “आपने किताब की झलक दिखाई वह बहुत अच्छा था” | सभी लोगों ने कहा की इन किताबों में बहुत मजा आया | मीना मैडम ने कहा – “मैं घर पर बहुत स्वेटर बुनती हूँ लेकिन इस किताब के चक्कर में कुछ नहीं हुआ, किताब पढ़ने का एक अलग ही मजा है | ऐसे किताबों से हमें परिचय नहीं था” | उसके बाद मैंने कहा की आप में से कोई है जो अपने पसंदीदा किताब का बूक टॉक करना चाहेंगे | रीता मैडम ने “बेढंगी” किताब का बूक टॉक किया – इस किताब पर चर्चा हुआ और रीता मैडम ने कहा की “किताब में लड़की के कई नाम दिये जाते हैं जो मुझे अच्छा नहीं लगा; क्यों हम किसी के नाम को बिगाड़े? हमारे आस पास में भी बहुत से लोग है जो लोगों को उसके रूप या कार्य से पुकारते है” | धर्मनाथ सर ने भी जोड़ते हुए कहा “मैंने इस किताब को पढ़ा है, इसको पढ़ने के बाद मुझे लगा की सबसे पहले अभिभावक को अपने बच्चे के बारे में समझना होगा, बच्चों को आजादी देनी होगी” |
रीता मैडम द्वारा “बेढंगी” पर Book Talk एवं चर्चा, 20 जनवरी |
उसके बाद मीना मैडम ने कमला भसीन जी द्वारा लिखित “काश मुझे किसी ने बताया होता” किताब का बूक टॉक किया और चंदा मैडम ने “मितवा” किताब का बूक टॉक किया | काश के बारे में मीना मैडम ने बताया की “यह किताब पढ़ने के बाद अपने आप पर व्यतीत कई घटनाएं याद आती हैं | हमारे समाज में आज भी अभिभावक अपने बच्चों के बातों पर विश्वास नहीं करते है | समाज में आय दिन यौन शोषण हो रहा है पर हमलोग उसे दबा देते हैं | उन्होने कहा की मैं इस किताब को अपने स्कूल के सभी लड़कियों को पढ़ने के लिए कहूँगी | मीना मंच के बच्चियों के साथ चर्चा करुँगी |” पुष्पा मैडम ने एक इसी से जुड़ी अपने परिचित की कहानी बताई – “एक बच्ची पढ़ने गोपालगंज जाती थी | एक दिन आटो में आ रही थी और उसके बगल में बैठे एक आदमी उसके पैरों को दबा रहा था | वह डर गई और आधे रास्ते में उतर गई और रोने लगी, तभी पुष्पा मैडम के किसी जानने वाले ने उनको फोन किया और बुलाया | पुष्पा मैडम गई तो वह बहुत डरी हुई थी | उन्होने बहुत पूछा पर बच्ची डर से कुछ नहीं बता रही थी | उसने कहा की आप पहले मुझसे वादा कीजिये की आप घर पर नहीं बताइएगा | उसने पूरी घटना को बताया और बोली की मम्मी पापा जानेंगे तो पढ़ने नहीं जाने देंगे | इस किताब के बारे में सुनकर मुझे आज यह लग रहा है की कितनी ऐसी लड़कियाँ होगी की अपने घर अपने बातों को नहीं बताती होंगी और जो बताती होंगी उनका घर से निकलना बंद | उनका क्या दोष है ? हमें अपने घर में बच्चों से इनपर भी बात करनी चाहिए |”
मैंने सोचा भी नहीं था की चर्चा इतनी खुल के हो सकती थी | काश किताब को प्रधानाध्यापक ने ले लिया और कहा की मैं भी इस किताब को पढ़ूँगा | शायद पूरे प्रक्रिया की यह सबसे बड़ी जीत थी |
मीना मैडम द्वारा “काश मुझे किसी ने बताया होता” पर Book Talk एवं चर्चा, 20 जनवरी |
मीना मैडम ने मितवा किताब के बारे में बताते हुये कहा की “इस किताब में भी एक परिवार, बच्ची को उतना नहीं मानता है लेकिन वह अपने पिता का जान बचाती है तब उसके पिता जी उससे प्यार करते है | क्या लड़कियों को अपने अधिकार के लिए हमेशा लड़ना ही होगा ?” (ऐसे चर्चाएं हो तो बस मज़ा ही आ जाता है) | धर्मनाथ सर ने कहा की अब यह पुरानी बात है, अब महिलाएं पुरुषों पर हावी हैं | पर इतना सुनते ही मीणा मैडम ने ही उनके बातों का जबाब दिया की आप कह सकते है पर ऐसा नहीं है | प्रधानाध्यापक ने “क्यों क्यों लड़की” किताब के बारे में बताते हुए कहा की मोयना के मन में जो प्रश्न आते हैं वह हमारे समाज में हो रहे घटनाओं पर आधारित हैं, अपने प्रश्न को खोजते हुए वह किताबों तक पहुँच जाती है | किताबों में सभी चीज के बारे में दिया गया है, हम किताब पढ़ कर सोच सकते हैं और अपने प्रश्नों को खोज सकते हैं | उन्होने कहा की “यह प्रक्रिया बहुत अच्छा है और सभी शिक्षिकाओं ने बहुत किताबे पढ़ी हैं और मैं उन लोगों को धन्यवाद देता हूँ और सभी सर से कहना चाहता हूँ की इन किताबों को अगर समय मिले तो जरूर एक बार पढे | मेरा आँख अच्छा हो जायेगा तो मैं अपने पुस्तकालय के सभी किताबों को पढ़ूँगा |”
*Note : यह ब्लॉग प्रयोग में कार्यरत प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेटर, बिनीत रंजन, द्वारा लिखा गया है | ब्लॉग में वे अपने अनुभवों को साझा कर रहे हैं और शिक्षकों के अनुभव को भी साझा कर रहे हैं | अभी तक प्रयोग ने जो भी पुस्तकालय सम्बंधित कार्य किया था वह बच्चों के साथ केंद्रित था पर शिक्षकों के साथ बाल-साहित्य से रूबरू होने का यह हमारा नया प्रयास है | शिक्षकों के अंदर इस प्रक्रिया द्वारा कौतुहल देख कर हम बहुत ही उत्साही हैं तथा हमारा उन तक बाल साहित्य पहुंचाने का सिलसिला जारी रहेगा | इसके लिए प्रेरित करने के लिए हम Bookworm टीम के आभारी रहेंगे |
Supr
Congratulations,Team Prayog!
मुझे यह blog पढ़ कर लग रहा है कि मैं उस कक्षा में हूँ और में भी उनमें से पढ़ी कुछ किताबों पर चर्चा कर रहा हूँ और दूसरों की बातें समझ रहा हूँ।ऐसा सजीव वर्णन है कि मजा आ गया। खास बात है कि शिक्षकों के लिए यह पहल की जा रही है।कृष्ण कुमार जी जब पढ़ना और पढ़ाई पर चर्चा कर रहे थे तो यह स्पष्ट होता है कि हमारी रीडिंग हैबिट कहाँ खड़ी है। प्रयोग का यह प्रयोग उत्साह वर्धक है।
धन्यवाद जय शेखर जी! आपने कृष्ण कुमार जी के बातों को बिल्कुल सटीक ढंग से व्यक्त किया है और कहीं न कहीं जब शिक्षकों के लिए बुक डिस्प्ले सोचा गया तो यह भी ध्यान में रखना था की कैसे उनको बाल-साहित्य एवं उनकी विविधताओं से अवगत कराया जाये | प्रयोग हमेशा तो किसी भी विद्यालय में काम नहीं कर सकता लेकिन उन विद्यालयों के कुछ शिक्षकों को इसके लिए प्रेरित कर पाए, यही प्रयास जारी रखने की ज़रूरत है अभी |