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एक विस्थापित घर के बच्चे के जीवन में पुस्तकालय का महत्त्व : अंकित का अनुभव

यह अंकित के पुस्तकालय सफर का एक हिस्सा है | 2020 में जब प्रयोग ने पहली लॉक डाउन के समय खेम मटिहनिया में सामुदायिक पुस्तकालय शुरू किया तब अंकित हमारे पुस्तकालय से जुड़ा।

अंकित का घर गोपालगंज जिला के दीयरा क्षेत्र में विशंभरपुर नामक गाँव में था । साल 2015 में भयानक बाढ़ के कारण अंकित का घर कटाव में चला गया  और वह अपने गाँव से विस्थापित होकर सासामुसा आ गया । सासामुसा लगभग दो साल किराए के मकान में रहा । आर्थिक तंगी के कारण साल 2017 में उसका परिवार किराया का मकान छोड़कर अपने बुआ के घर खेम मटिहनीयां आ गया । 

अंकित के पिता दैनिक मजदूर हैं और वो बिहार से बाहर कार्य करते हैं ।  अंकित स्वभाव से बहुत शांत और शर्मीला है, वह बहुत कम बोलता है । शुरू में अंकित सत्र में आता था और बिना किताब जारी किए ही चला जाता था । अंकित से हमने धीरे-धीरे बाते करना शुरू किया । धीरे धीरे मेरे और अंकित के बीच एक गहरा संबंध सा बनता गया । अंकित अपनी सभी बातों को साझा करता था और मैं उसकी बातों को बहुत ही खुले मैं से सुनता था। बहुत सी चुनौतियां उसके सामने थी पर वह हमेशा हमारे पुस्तकालय में आता रहा । अंकित को पढ़ने और लिखने में बहुत दिक्कत होती थी और कई दूसरे बच्चों की तरह वह सत्र के दौरान सबके सामने नहीं बोलता था । अंकित का एक ही सवाल रहता था – “मैं कैसे पढ़ूँ” ? सत्र के दौरान हमलोग मिलकर साझा रीडिंग भी करते थे । अंकित धीरे-धीरे पढ़ने लगा और लिखने भी लगा । उसके लेखन को हमारे पूरे टीम ने पहले दिन से लेकर और जब तक हमारे पुस्तकालय में जुड़ा रहा तब तक बहुत ही नज़दीक से देखा है और वह हमारे बातों पर विचार भी करता था , बेशक उसमें बहुत बदलाव भी आया – सत्र के दौरान अंकित अपनी बातों को रखने लगा, वह अपनी पढ़ी कहानी को सबके समक्ष साझा करता और सत्र के दौरान प्रश्न भी पूछता । यह देखकर हम बहुत खुश होते और अपने साथियों के साथ चर्चा भी करते की अंकित में कितने बदलाव आये हैं। अंकित और वहाँ के बच्चों के उत्साह को देखकर हमारी टीम का भी आत्मविश्वास बढ़ता गया । अंकित से जब भी मुलाक़ात होती तो बहुत उत्साह से वह साझा करता की अभी तक कितने किताबे पढ़ लिया और उसके आँखों में एक अलग ही ऊर्जा दिखने लगी । 

एक दिन अंकित ने बताया की वह इस गाँव को छोड़ कर जा रहा है क्यूंकि उसका घर कुचायकोट में बनने वाला है । हमने उसे बधाई दिया और अपने कुचायकोट ऑफिस का पता भी दिया । अंकित हमारे पुस्तकालय का एक अहम वोलेंटियर भी था ।  यह पुस्तकालय सत्र संचालन, किताबों के लेन-देन, गाँव भ्रमण में भी बहुत मदद करता था । 

आज मैं ऑफिस में अकेला था । मैं अपने कार्यों में व्यस्त था तभी नमस्कार भैया का आवाज़ मेरे कानों में आया और मैंने देखा तो वह अंकित था ।  उसे देख कर मैं बहुत खुश हुआ और उसे बैठने को कहा । अंकित और मेरे बीच पहले बहुत सी व्यक्तिगत बातें हुई । अंकित ने बहुत ही खुल कर बातें की और यह देखकर मैं चकित था की क्या वह वही लड़का है ? अंकित ने पुस्तकालय का भ्रमण किया और एक किताब भी पढ़ा । उसके बाद उसने घर ले जाने के लिए एक किताब जारी किया । अंकित ने कहा की मुझे जब भी समय मिलेगा मैं अपनी पुस्तकालय में जरूर आऊँगा । अंकित वर्तमान में वर्ग 10 में पढ़ रहा  है ।  

इस लेख को प्रयोग के पुस्तकालय संचालक बिनीत रंजन ने लिखा है और यह उनका निजी अनुभाव है | अंकित और अंकित जैसे सैंकड़ों बच्चे बच्चियों के साथ प्रयोग की पूरी टीम एक साथ कार्य कर रही है | पता नहीं कब किसकी कौन सी बात से बच्चे प्रभावित हो जाते है | अंकित के साथ जो भी हुआ वह हमारे टीम के प्रयास का ही नतीजा है | 

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2 Comments on “एक विस्थापित घर के बच्चे के जीवन में पुस्तकालय का महत्त्व : अंकित का अनुभव

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