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एक लाइब्रेरियन का अनुभव, सीधे दिल से !

आज मैं अपने कुछ अनुभवों को आप सभी के बीच साझा कर रहा हूँ मेरा नाम कैलाश पति साह हैं और मैं प्रयोग नामक संस्था मे काम करता हूँ, प्रयोग विद्यालयों में लाइब्रेरी पर केंद्रित काम करता है। प्रयोग संस्था जून 2013 मे कुचायकोट प्रखण्ड के बनियाछापर गाँव से शुरू हुआ सामुदायिक पुस्तकालय के रूप मे इसकी शुरुआत की गई वहाँ बच्चे आते थे खुद से किताब लेते थे और पढ़ते थे और बच्चे खुद डिमांड भी करते थे की हमे कौन सी किताबे चाहिए इसी को देखते हुये इस कार्य को हमने शिक्षा विभाग के साथ मिलकर सरकारी विद्यालयों मे शुरू किया गया |

                              आज हम आपसे उन अनुभवो को साझा कर रहा हूँ इस लॉक डाउन के समय मे हमारे संस्था के टीम ने मिलकर किया है। लॉक डाउन को देखते हुये सारे विद्यालय बंद थे और बच्चो से हमारा संपर्क टूट गया था अर्थात स्कूल मे हमारा पुस्तकालय सत्र संचालित नहीं हो पा रहा था और बच्चो के बीच किताबे नहीं पहुँच पा रही थी हमारे टीम मे बिनित सर है जो मेरे पहले से कार्यरत हैं। उन्ही के द्वारा एक सुझाव रखा गया की इस महामारी के बंदी के समय मे हम बच्चो से कैसे संपर्क बना सकते हैं तो उन्होंने हमसे एक सुझाव साझा किया की क्या हम बच्चो के बीच किताबों का लेन देन का कार्य शुरू कर सकते हैं ? उन्ही बच्चो के साथ जिन स्कूल मे हम काम करते है | और इस प्रोजेक्ट का नाम थालाइब्ररी चले बच्चों के घर| जिसमे हम बच्चो के बीच किताब लेकर जाएँगे और उन्हे किताब देंगे घर लेजा कर पढ़ने के लिए और इस पुस्तकालय मे कुछ गतिविधियाँ भी होंगी जैसे :- लेखन एवं चित्रकारी प्रतियोगिता इत्यादि | शुरू मे 3 जगह पे काम करने का सुझाव लिया गया की कुचायकोट प्रखंड के कोई 3 विद्यालय के बच्चो के साथ इस कार्य को किया जाएगा मैंने अपने विद्यालयों के प्रधानाध्यापक जी से इस पुस्तकालय के बारे मे चर्चा किया और उन्हे इस प्रोजेक्ट से जुड़ी सारी जानकारियां दी वो हमे पहले तो ये बोले की क्या आपके पास कोई इसका लेटर है? शिक्षा विभाग का अनुमति वाला पत्र हैं?  मुझे थोड़ा दुख तो हुआ और मेरे मन मे कई सवाल भी उठ रहे थे पर मुझे पता था की उनके लिए भी ये चुनौती होगा।  मैं सोचने लगा की क्या हम बच्चों  के साथ इस कार्य को कर पाएंगे ? क्या हम बच्चो के बीच कोई गतिविधि कर पाएंगे ? और बहुत से विचार थे जो मन मे रहे थे इन दिक्कतों को मैंने अपने टीम से साझा किया | बिनित जी जो की बालुवन सागर संकुल देखते थे और मैं बेलवा संकुल | उन्होने कहा – “कोई बात नहीं, मैंने अपने संकुल के खेम मटहिनिया गाँव के विद्यालय के प्रधानाध्यापक जी से बात की है उन्होने कहा है की सुझाव तो अच्छा है हम इस सामुदायिक पहल को कर सकते है |

 

 तो फिलहाल हम इसे पहले यही से शुरुआत करते हैं उसके बाद देखा जाएगा मुझे बहुत खुशी हुई, कहते है की डूबते को तिनके का सहारा मैं बहुत उत्सुक था इस प्रोजेक्ट को करने के लिए हमने एक समय निर्धारित किया बच्चो और बच्चो के गार्जियन के साथ बैठ कर इस प्रोजेक्ट पर चर्चा करने के लिए मैं और बिनित जी खेम मटहिनिया गए और वहाँ के अध्यापक से एक दिन और समय निर्धारित किया जो की उसी गाँव की एक अध्यापिका हैं उन्ही के घर के आगे एक दालान जैसा जगह था वही पे बच्चो और गार्जियन की मीटिंग हुई जिसमे बच्चे भी थे और उनके माँ भी आई थी दोचार बच्चो के पिता भी इस मीटिंग मे थे उन सभी के बीच हमारा चर्चा शुरू हुआ हमने पहले अपने बारे मे बताया, उसके बाद अपनी संस्था के बारे मे बताया और बच्चो के गार्जियन से कुछ सवाल हमने पूछे और उनके द्वारा हमे जवाब भी मिले

 

प्रश्न :- हम आपसे एक बात जानना चाहते है इस लॉकडाउन के समय बच्चे क्या कर रहे हैं ?

गार्जियन के जवाब :- घूमता है , मोबाइल से टाइम पास करता है कभी पढ़ता हैं , मोबाइल देखता हैं , घर का कमधाम करता है , क्रिकेट खेलता है

 

प्रश्न :अच्छा और लड़कियां  क्या करती हैं ?

गार्जियन के जवाब :- बैठे रहती है , खाना बनती है , TV देखती है , कभी पढ़ाई करती हैं

 

प्रश्न :बच्चो के पढ़ाई को लेकर आपलोगों को क्या चुनौतिया या समस्या रही हैं ?

  1. लड़का स्कूल मे पढ़ने जाता था तो संचित रहता था और इस समय तो झगड़ा करता हैं
  2. पढ़ता था तो अभ्यास होते रहता था लेकिन इस समय तो सब भूल रहा हैं
  3. 2-3 महीने से बच्चे बैठे है तो सब भूलते जा रहे हैं
  4. कभी बोलने पर पढ़ने बैठता है कभी नहीं बैठता हैं
  5. गाँव मै घूमता हैं |

सवाल जवाब के बाद गार्जियन से हमने पूछा की क्या अगर आपके बच्चो को हम यहां आकर किताबे दे पढ़ने के लिए तो क्या वह पढ़ेंगे ?

उनका जवाब था – “हाँ, क्यों नहीं ! पढ़ेंगे नहीं तो क्या करेंगे?” दिन भर घूमने से तो अच्छा है की बच्चे पढ़ें गार्जियन की हामी सुनकर मुझे बहुत प्रस्सनता हुई की उस गाँव के गार्जियन का हमे पूरा सपोर्ट मिल रहा हैं क्योंकि हमारे पास सबसे बड़ी चुनौती यही था की बच्चो के गार्जियन से अनुमति लेना और उनके बातों को  समझना। अभिभावकों से कहा गया की ठीक है, हम इस कार्य को जल्द ही शुरू करेंगे और आपको आगे का जानकारी मिल जाएगा की हम कब बच्चो को किताबे देने रहे हैं

अनुमति मिलने के बाद भी मुझे डर लग रहा था की कैसे होगा किस तरह से सारी प्रक्रिया होगी | हमने ऑफिस पे आकार कुछ किताबों का संग्रह तैयार किया और हर किताब पर दो प्रश्न दिये, एक A4 प्लैन शीट पर हमारा पहला सवाल बच्चो के सोच पर आधारित था की बच्चे कहानी पढ़ कर उनसे जुड़े अपने अनुभवो को लिखे और दूसरा सवाल था की उस किताब मे उन्हें जो भी चित्र अच्छा लगे उसे बनाए और यह भी बताए की ये चित्र उन्होंने क्यों बनाया इन प्रश्नो के साथ हमने कुछ किताबें तैयार की और 18/07/2020, दिन शनिवार को हम लोगो ने तय किया की इसकी शुरुआत करेंगे |

हमारे टीम की प्लानिंग थी की मैं 10 बजे तक गाँव पहुँच जाऊं और बच्चो को लेनदेन कार्ड देकर उन सभी से भरवा कर तैयार रंखू , दूरी बनाते हुये   चुकी मैं थोड़ा पास मे रहता हूँ और मुझे जाने मे ज्यादा समय नहीं लगेगा और मैं  वहाँ लगभग 9:55 पर पहुँच गया उस समय लगभग 15-20 बच्चे आए थे सर ने भी कहा की सर ज्यादा बच्चे नहीं आएंगे कोई दिक्कत नहीं होगा और मैं पेड़ के नीचे बैठ कर किताबों को अरैंज करने लगा और अभी तक बिनित जी नहीं आए थे किताब अरैंज करने के बाद मैंने देखा की बच्चो की संख्या बढ़ गई हैं मैं यही सोच रहा था की कोई बात नहीं होगी, कहीं से चट (त्रिपाल ) ले कर वहाँ पीपल के पेड़ के नीचे बिछा कर बच्चो को 2-2 हाथ दूरी पर बैठा दूंगा और मुझे खुशी भी हो रही थी और अंदर ही अंदर डर भी लग रहा था की क्या होगा, कैसे होगा | और अभी तक बिनित जी नहीं आए थे और देखते ही देखते बच्चो की संख्या लगभग 100 के आसपास हो गई थी अब मुझे कुछ सूझ ही नहीं रहा था की मैं क्या करू क्योकि मैंने सोचा भी नहीं था की इतने बच्चे जाएंगे मैंने कैसे भी कर के बच्चो से कहा की आपलोग थोड़े देर खुले जगह मे खेले तथा बैठे हम किताब लेनदेन प्रक्रिया थोड़ी देर मे शुरू करेंगे और मैंने बिनित जी को कॉल लगाना शुरू किया मुझे समझ मे ही नहीं रहा था की मैं क्या करू। फिर कुछ देर बाद बिनीत जी आए , तब जाकर मुझे थोड़ा रिलीफ महसूस हुआ उन्होने आते ही बच्चो से कहा की जितने भी छोटे बच्चे है वो घर चले जाये यहाँ केवल 6, 7 और 8 क्लास के बच्चे रुकेंगे फिर भी बच्चे तो भाई बच्चे है वो मानेंगे थोड़ी हमने 6, 7 और 8 के बच्चो को फील्ड मे एक बड़े से गोलेकार मे खड़ा किया, दूरी बनाते हुये। और बच्चो को लेनदेन कार्ड दिया गया और उन्हे एक फ़ारमैट दिखाया गया और कहा गया की सभी बच्चे घर जाये और घर से इस फ़ारमैट जैसा अपने कार्ड को घर से बना के लाये और हमने यह भी देखा की बच्चे बिना मास्क के आए हैं हमने उनसे कहा की अगर आपको किताबे लिनी है तो मास्क लगा कर आना होगा | हम यहाँ 1 बजे तक है बच्चे घर चले गए हमने उस बीच थोड़ा चैन की सांस ली और हमने जो किताबे लेकर गए थे उन्हे डिस्प्ले मे लगाया और बच्चो का इंतजार करने लगे बच्चे 2-3 करके आते गए और किताब लेकर और लेनदेन कार्ड भर कर हमारे पास जमा कर के जाते रहे | हम हर बच्चे को बोले की किताब मे एक शीट है उसमे 2 प्रश्न है किताब पढ़ने के बाद उन प्रश्नो को लिख कर लाना हैं बच्चो को एक दिन बता दिया गया की बुधवार को हम किताब लेने आएंगे और आपको दूसरी किताब देंगे लेकिन लेनदेन प्रक्रिया मैडम के घर के आगे वाले दालान  मे होगा, जहाँ मीटिंग हुआ था सभी बच्चो ने सहमति जताई और हम लोग वहां से गए मन मे बहुत खुशी भी हो रही थी की हमने अपना प्रोजेक्ट शुरू कर दिया और हमने कुछ बच्चो को किताबे भी बाँटी |


               इस कार्य को करते समय बहुत सारी चुनौतियां भी हमारे सामने आती गई और हमने उसके अनुरूप अपना प्लान तैयार करते गए इस कार्य को करते हमे बहुत खुशी हो रही थी मगर हम बहुत थक जाते थे मगर खुशी इतनी होती थी की थकावट महसूस नहीं होती थी। की आज हमने बच्चो को कुछ किताबे पहुंचाई |

               अब बारी आती है दूसरे दिन की जिस दिन बच्चों से किताब और उत्तर शीट्स लेनी हैं और दूसरी किताब देनी हैं उस दिन बच्चे वहाँ आए थे मगर हम वहाँ नहीं पहुच सके क्योंकि बारिश बहुत तेज़ होने लगी बारिश बहुत हो रही थी और किताबे भी थी किताबे बारिश मे भीग जाती इस लिए हम उस दिन नहीं आए बच्चे उस दिन आए और इंतजार करके चले गए मैंने और बिनित जी ने तय किया की अगले दिन हम दोनों साथ जाएंगे आप एक जगह रुकिएगा मैं आऊँगा तो साथ चलेंगे मैंने कहा ठीक है मैं 22/07/2020 को बालुवन बाजार मे रुक कर बिनित जी का इंतजार कर रहा था और बच्चो का नया लेन देन कार्ड तैयार कर रहा था तभी बिनित जी कॉल किए की वो जाम मे फस गए हैं और समय पर नहीं सकेंगे | आप वहाँ जाकर बच्चो को सूचित कर दीजिये मैंने कहा ठीक है मैंने किताब का बैग वापस घर पर भेजवा दिया और मैं निकल पड़ा स्कूल के बच्चो की तरफ और मुझे थोड़ा दुख भी हो रहा था की आज बच्चो को फिर से निराश होना पड़ेगा और वो दुखी होकर घर जाएंगे मैं आधे रास्ते तक ही पहुंचा था की बिनित जी ने फिर कॉल किया और कहा की कैलाश जी मैं रहा हूँ आप वहीं रुकिए। मैंने कहाँ सर किताबे तो मैंने घर भिजवा दी और बिना किताब के कैसे होगा? बिनित जी ने कहा कोई उपाय लगा के किताब मंगवा लीजिये मै खुश हो गया की आज बच्चे निराश नहीं होंगे। आज कितना भी समय क्यों लगे बच्चो को किताब दिया जाएगा अभी हमारे पास बहुत समय है मेरे मन मे जोश उमड़ पड़ा मैंने कहा की सर आप आइये मैं घर जाकर किताबे लेकर आता हूँ और हम लोग बालुवन मे मिलेंगे उन्होने कहा ठीक हैं मैं घर से किताबे लेकर बालुवन मे इंतजार किया और बिनित जी का कॉल आने पर मैं पहले बच्चो के गाँव पहुँच कर उनके गार्जियन से कहा की आज बच्चो के बीच किताब का लेनदेन होगा आप लोग बच्चों को सूचित कर दीजिये की 12 बजे से किताबे बच्चो को दिया जाएगा और हम दोनों साथ मिलकर बच्चो के पास गए वहाँ बच्चों को देख कर मै बहुत खुश हुआ और बच्चे भी देख कर खुश हुयेवो चिल्लाने लगे सर गए, सर गए! बच्चो के बीच किताब लेने की ललक और पढ़ने की चाह को देख कर मेरा मन बहुत खुश हो गया और मुझे बहुत अच्छा भी लगा की बच्चो को आज किताबे मिलेंगी उस दिन हमने कुछ नए बच्चो का भी लेनदेन कार्ड बनाया जो इंतजार कर रहे थे इस लाइब्रेरी से जुड़ने का और जो बच्चे किताब ले गए थे वो किताब और उसकी उत्तर शीट्स हमे दिये और अपने लेनदेन कार्ड पर लिख कर दूसरी किताब लिए और हमने बच्चो से ही पूछा की क्या यहाँ कोई ऐसी जगह नहीं है जहा हम दूरी बना कर आप सभी को किताब दे सके या कुछ गतिविधि करवा सकेकोई बगीचा, कोई बड़ा सा फील्ड, इत्यादि एक बच्चे ने कहा एक जगह है, यही बगल मे ही मेरे एक बड़े पापा का दालन है जो की बहुत बड़ा है अगर आप चाहे तो वह हो सकता है | फिर मैं उस बच्चे को लेकर उस जगह पर गया जो लालन जी का दालान था मैने उन्हे अपना परिचय दिया और उनसे नम्र निवेदन के साथ कहा की क्या आप हमे यहा बच्चो को किताब बांटने की अनुमति दे सकते है? हम बस सप्ताह मे 2 दिन आएंगे1 से 2 घंटे के लिए उन्होने कहा, “हाँ, कोई दिक्कत नहीं है | ये तो बहुत अच्छी बात है की बच्चे को किताब आपलोग दे रहे हैं पढ़ने के लिए. हमे कोई दिक्कत नहीं है। आप यहाँ अपना काम आराम से कर सकते हैं उस दिन हमने कुछ बच्चो को किताबे वही से बांटी और वापस गए


हमने ऑफिस मे बैठकर आपस में चर्चा कर एक प्लान तैयार किया और उस दिन हमे कुछ बच्चो के कांटैक्ट नंबर और क्लास भी मालूम चल गए थे उनके उत्तर शीट्स से हमने बच्चो को 3 ग्रुप मे बाँट दिया ताकि ज्यादा भीड़ हो हमने कक्षा 4,5,6 के बच्चों को एक साथ किया 7और 8 को एक साथ किया और बिना क्लास लिखे बच्चो को एक साथ किया और उनका समय निधारित कर उन्हे कॉल के जरिये सूचित करते हुये अलगअलग समय पर बुलाया ताकि भीड़ हो उस दिन भी बच्चो को किताब दिये गए और उनके शीट्स लिए गए बच्चो के उत्तर और उनके चित्र बहुत ही प्यारे थे उनकी सोच भी बहुत अच्छे हैं वो कहानी को अपने नजरिए से पढ़ते है और लिखते है।


इस कार्य को करने मे हमे भी बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है। और बच्चो के साथ किताबों का तालमेल बढ़ रहा है जो वो मुझे बहुत ही अच्छा लग रहा हैं बच्चो के साथ हम अपने इस प्रोजेक्ट को करते हुये जो भी चुनौतियां रही है उसके अनुसार अपने प्लान मे हम शामिल करते है और उन्हे दूर करने की कोशिश कर रहे हैं |


* यह ब्लॉग कैलाश द्वारा लिखा गया अनुभव है | अभी सिलसिला जारी है! 

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3 Comments on “एक लाइब्रेरियन का अनुभव, सीधे दिल से !

  1. I can only say one word
    ASTONISHING
    Its very inspiring for this generation and generations to come .

    My sincere regards to the team for a change .

  2. Education is prime factor that can bring valuable change to society. It is an inspiring effort for many more. I hope some more similar ignited minds with iron will power come along with the PRAYOG and it will reach to every child to have basic right. Good luck to your team.

  3. The discontinuance in school education gravely affected the kids of resource-poor settings during this pandemic.
    The community library of the Prayog is turning out as a spectacular contributor for a hassle-free learning experience to kids.
    Please let me know how can I help you!
    My best wishes with team

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