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“कौतुहल” – Covid 19 के समय में बच्चों के जीवन में लाइब्रेरी का महत्त्व

 पिछले डेढ़ महीने से हम लोग लाइब्रेरी सत्र का सञ्चालन खेम मटिहनिया गाँव में कर रहे हैं | हर सत्र के बाद हम ऑफिस पर आकर उस दिने के सत्र के बारे में चर्चा करते हैं | बहुत ही दिलचस्प observations सामने आते हैं बच्चों के साथ मिलकर बात करने पर | इस ब्लॉग में मैं एक ऐसे ही post session चर्चा के के कारण हुए बदलाव के बारे में साझा कर रहा हूँ | 

उस दिन लाइब्रेरी सत्र के दौरान बच्चों के तरफ से जो प्रश्न आये थे, उनके बारे में चर्चा किया और तय किया की बच्चों से किताब लेते समय किताबों को अच्छे से देखेंगे तथा किताब के रखने के तरीके पर हमेशा चर्चा करेंगे | हमने तय किया की उनसे बात करते हुए पूछेंगे की उन्हें सबसे अच्छा कहानी कौन सा लगा और क्यों ? अगले सत्र में हम पहुंचे तो हमने देखा की बच्चों की उपस्थित बहुत अच्छी थी | पूरे सत्र में हमें  बहुत अच्छा लगता है की बच्चे एक दूसरे को अपनी कहानी पढ़ने के लिए बोल रहे हैं जैसे “आज आप यह कहानी किताब लेकर जाईयेगा, इस कहानी में बहुत राज़ है” | जब भी हम ऐसा कुछ सुनते हैं तो बहुत खुश होते हैं की बच्चे आपस में ‘बूक टॉक’ खुद से कर रहे हैं | हमने किताबों का प्रदर्शनी लगाया और इससे पहले बच्चों ने अपने पुराने किताबों को जमा किया | सभी बच्चे बहुत खुश थे पर सबकी नजर किताबों के प्रदर्शनी पर था और हमें लग रहा था की वे अपने-अपने किताबों को मन ही मन चयन कर रहे थे की आज उन्हें कौन से कहानी किताब ले जाना है | उनके अंदर किताबों के प्रति इतना प्रेम देखर मैं बहुत खुशा था |  

फिर उनसे चर्चा करते हुए कहा की आप अभी तक कितने कितबे पढ़ चुके है ? बच्चों ने कहा की 5 या 6 किताबे पढ़ चुके है | जब उनसे पुछा गया की उन्हें  सबसे अच्छा कौन सा किताब लगा तो उन्होने कहा की सभी किताबे बहुत अच्छी है | इस प्रश्न को हमने थोड़ा और आसान किया और पुछा की यदि उन्हें एक ऑप्शन दिया जाये की इन 5 या 6 किताबों में से सबसे अच्छा कौन सा लगा तो बच्चे शांत हो गए और सोचने लगे | कुछ देर बाद एक बच्ची मनीषा ने कहा की मुझे ‘मोनिका’ कहानी बहुत पसंद है | इस कहानी में मोनिका के बारे में बताया गया है की ससुराल जाने के बाद उसके साथ क्या होता ? अगर वह काम नहीं करेगी तो उसे खाने को नहीं मिलेगे, इसके चित्र मुझे बहुत अच्छे लगते हैं और मोनिका क्या करती है यह भी अच्छा लगा | आलोक ने बताया की ‘राज और कियांग’ किताब मुझे बहुत अच्छा लगता है | इस किताब में प्रकृति के बारे में बताया गया है और मुझे प्रकृति से जुड़ी कहानी पढ़ने में अच्छा लगता है | सुलोचना ने ‘मितवा’ किताब के बारे में अपने अनुभव को साझा करते हुए बताया की इस कहानी में मितवा ने अपने पिता की जान कैसे बचाई, यह मुझे बहुत अच्छा लगा | करिश्मा ने ‘मीता के जादुई जूते’ के बारे में बताया की इस कहानी में मीता अपने दोस्तो की कैसे मदद करती है, यह बहुत अच्छा लगा | सभी बच्चों ने एक कहानी के बारे में अपना अनुभव साझा किया | वे अपने अनुभव को साझा करके बहुत खुश थे | बच्चो के अनुभव सुनकर हम लोग भी  बहुत खुश था की वे कितने सरल तरीके से कहानी के बारे में बताये और कहानी को खुद से जोड़कर भी देख रहे हैं | कहानी के प्रति उनकी समझ को देखर प्रयोग टीम भी बहुत खुश है | 

चर्चा के दौरान बच्चो ने साझा किया की इस किताब को घर में सभी लोग पढ़ते है | हम लोग कहानी को पढ़कर घर में सुनाते है |  यह सुनकर तो मानो हमारे  मन में मोर नाचने लगा की हम तो एक बच्चे को किताब दे रहे है और यह किताब पूरे समुदाय तक बच्चों के माध्यम से पहुँच रहा है! उसके बाद उनसे साझा किया गया की अगले सत्र में उनसे मिलने हमारे दो और साथी आएंगे, बच्चे बहुत खुश हुए की उनसे मिलने कोई आ रहा है | बच्चो से पुछा गया की क्या वो अपने लाइब्रेरी कार्ड को एक नया रूप दे सकते हैं? सबने बोला की आप ही कुछ तरीका बताइये की कैसे हम कार्ड को अच्छे से बना सकते है | हमने अपने प्रशिक्षण कार्यशालाओं में कई प्रकार के लेन देन कार्ड देखा है और उनसे वो अनुभव साझा किया | बच्चे बहुत  खुश हुए और ऐसा लग रहा था की सबमें लाइब्रेरी कार्ड को बनाने का एक होड़ लगा हुआ है | 

सत्र में ही चर्चा के दौरान बताया की अगले सप्ताह में शामिल होने वाले कुछ नये किताबों का बूक टॉक किया गया | जैसे ‘एक लड़की जिसे किताबों से है नफरत’, ‘माछेर झोल’, ‘मीतों बकरी’ इत्यादि | बच्चों को इन किताबों के बारे में भूमिका बांध गया और अब वो नए किताबों के बारे में सोचने लग गए | किताबों के प्रति उनके झुकाव को बढ़ाने के लिए भूमिका की बहुत अवश्यकता होती है | बच्चों के चेहरे पर हमने एक अलग ही खुशी महसूस की जो मानो ऐसा था की सबके मन में यही बातें चल रही हैं की किताब अभी क्यों नहीं लाये? अपने मन में उन कहानियों के बारे में सोचने लगे की कौन सा किताब उन्हें अगले बार लेना है | 

हमारा अनुभव कहता है की यह जिज्ञासा ही उन्हें अगले सत्र में आने के लिए प्रेरित करता है | आगे क्या होगा ? नई किताबों के प्रति बच्चों का प्रतिक्रिया कैसे रहा ? बच्चों के तरफ से किस प्रकार के प्रश्न आएं ? इन बातों की चर्चा हम अगले भाग में करेंगे | 

Note: इस ब्लॉग को प्रयोग के सदस्य, बिनीत रंजन ने लिखा है | सामुदायिक पुस्तकालय के इस प्रयास को कुचायकोट प्रखंड के खेम मटिहनिया गाँव में किया जा रहा है जो गंडक नदी के किनारे बसा हुआ है – अभी तक >70 बच्चे इससे जुड़े हैं और नियमित किताबों का लेन देन कर रहे हैं | 64% भागीदारी बच्चियों की है और इसमें भी कक्षा 6 से 8 (early adolescent age group) से ज़यादा रुझान है | क्या कोई ख़ास वजह हो सकता है, शायद इसे हमें और बारीकी से समझने की ज़रूरत है | 

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