2020 के लॉकडाउन के दौरान मेरा चयन प्रयोग संस्था मे हुआ जो बच्चों के साथ पुःतकालय आधारित कार्य करती है | हमारे साथियों द्वारा हमारा प्रशिक्षण भी चल रहा था पर सभी स्कूल बंद थे | खेम मटहिनिया नाम का एक गाँव है जिसमे हमारे साथियो के सहयोग से लॉकडाउन के दौरान पुस्तकालय सत्र संचालित किया जाता है जिसे भी देखने को मिला और पहले तो हम सिर्फ कुछ दिनो तक देखे कार्यो को समझे प्रशिक्षण के बाद हम भी बच्चों मे घुल मिल गए | चार महीने बाद ‘बुकवर्म’ संस्था द्वारा हमारा ऑनलाइन एवं ऑफलाइन प्रशिक्षण हुआ | इस बीच स्कूल भी खुला और हम स्कूल मे भी पुस्तकालय सत्र संचालित करने लगे मगर वो भी कुछ दिन तक ही चला फिर अप्रैल 2021 में लॉक डाउन लग गया | फिर से स्कूल बंद हो गए और तब हम सभी साथियों ने तय किया की हम सभी एक-एक सामुदायिक पुस्तकालय खोलेंगे | मैं अपने भांजा से बात की जिसका नाम देवांश है, उसे पुस्तकालय के बारे मे नहीं पता था | मैं उसे बताई की हम तुम्हें कहानी की किताब देंगे तुम उसे एक सप्ताह पढ़ोगे फिर उसे जमा करोगे और दूसरी किताब लोगे |फिर एक दो किताब उसे पढ़ने को दिया और वह किताब उसे बहुत अच्छी लगी | वो अपने दोस्तो को लेकर मेरे पास आया | बच्चो को पुस्तकालय के बारे मे बताया और उसी दिन मैंने अपने गाव के कुछ लोगो से बात किया तथा सभी ने अपनी सहमति जाहीर की वे अपने घर के बच्चों को पुस्तकालय से जोड़ना चाहेंगे | मगर कुछ आदमी थे जो उन बच्चो के माँ – पिता तों नहीं, पड़ोसी थे और उन्होंने कहा सभी लोग करोना मे घर से बाहर नहीं निकलने दे रहे है और तुम बच्चो को किताब दोगी? मैं उन्हें तो कुछ नहीं बोली पर अपने साथियों से इस बात को साझा किया | हमलोग कोरोना से जो खलबली मची थी उसे कम होने का इंतजार करने लगे और अपने कार्यो मे ऑनलाइन के माध्यम से जुड़े रहे – किताबें पढ़ना, उन किताबों पे चर्चा करना और इस कार्य मे बुकवर्म टीम के लोग भी गोवा से जुड़े रहे | जब बिहार सरकार ने अनलॉक की घोषणा की और साथ ही गाँवों में कोरोना का खौफ और संख्या कुछ कम होते दिखा, तो हम बच्चो तक पहुँचने का सोचने लगे |
इसी बीच बच्चे भी बराबर आते रहे और पूछते रहे की किताबें कब मिलेंगी? पुस्तकालय कब खुलेगा? मैं उन्हे बोलती रही बहुत जल्द और फिर वो दिन आ ही गया | विगत 10 जून को प्रयोग के सभी साथियों ने तय किया की अब समय आ गया है की हम बच्चो तक पाहुचें | मैं 11 जून को सुबह –सुबह उठ कर अपने गाँव माधोमठ चौच्चका और बगल के गांव कवलाचक के लगभग पचास घरो मे गयी और वहां बच्चों और उनके माता – पिता से बात किया पर किसी भी बच्चो के माँ पिता ने मना नहीं किया | सभी बच्चे बहुत उत्साहित थे ! मैं उन्हें बोल कर आई थी की हमारे कुछ और भी साथी है जो आप सब के घर आप सभी से मिलने आज आएंगे |सभी साथियो को फोन करके समय पर आने को बोली और सभी साथी समय के अनुसार हमारे घर पहुंचे और वही से हम सब एक साथ बच्चो के घर जाने का प्लान कर रहे थे | सभी के आने के बाद हम निकल ही रहे थे की तीन-चार ग्रुप मे 15-20 बच्चे आ पहुंचे |बच्चो को लेकर हमलोग उनके माता-पिता से मिले उनसे बात करने पे की अभी के समय मे बच्चे क्या कर रहे है लगभग सभी का यही कहना था की –
“बच्चे खेल रहे है और इधर उधर घूम रहे हैं | स्कूल तो बंद है तो बच्चे क्या करेंगे? जो पढ़ रहे थे वो भी भूल गए हैं |” यह पूछने पर की आपके बच्चों को हम किताबें दे तो वो पढ़ेंगे और आप उन्हे पुस्तकालय भेजना चाहेंगे तो सभी के माँ-पिता ने सहमति जाहीर की और बोला की आप लोग पुस्तकालय खोलिए, हमारे बचे पढ़ेंगे तो हमे भी खुशी होगी – हमे कोई आपत्ति नहीं है |
टीम के सभी साथी बहुत खुश थे, हम लोग ऑफिस आ गए और सभी ने अपना –अपना अनुभव साझा किया | एक सप्ताह मे हमारा सामुदायिक पुस्तकालय सत्र माधोमाठ मे भी शुरू हो जाएगा | यहां बच्चो के संख्या के अनुसार हो सकता है या दो गाँव है तो दो पुस्तकालय खुलेगा | बच्चे बहुत उत्साहित थे और आज तो मेरे घर गाँव की दो औरतें भी आई थी जो उन्ही बच्चों में किसी की दादी थी और किसी की माँ थी | वे पूछने आई थी की वे अपने घर के बच्चों को कब से भेजना शुरू करें? मैंने उन्हें साझा किया की बस, दो से तीन दिन और, उसके बाद पुस्तकालय शुरू हो जाएगा | गाँव के सभी बच्चे इस पुस्तकालय में आकर अपने मन पसंद की किताब पढ़ पाएंगे और घर भी ले जा सकते हैं |
मुझे पता भी नहीं था की मैं यह सब कर पाऊंगी, वह भी इतना जल्दी | अभी पिछले साल तक तो मैं यह सब सोची भी नहीं थी कभी पर आज बच्चों के साथ काम करने में मेरा मन इतना लग गया है की अब और कुछ नहीं सूझता है | मुझे पुस्तकालय से जुड़कर बहुत ख़ुशी है और यही ख़ुशी मैं अपने समुदाय के हर बच्चे -बच्चियों की आखों में देखना चाहती हूँ |
* इस ब्लॉग को रागिनी ने लिखा है | रागिनी पिछले 9 महीनों से प्रयोग के साथ जुड़कर बच्चों के साथ काम कर रही हैं | बच्चों के साथ बात करना, कहानियां सुनना और सुनाना इन्हे बहुत ही पसंद है | अपने मेहनत और टीम के साथ चर्चा करते-करते आज इनकी किताबों के प्रति समझ बढ़ी है और ये अपने समुदाय के बच्चों तक पुस्तकालय की पहुँच बनाने की कोशिश में लगी हुई हैं | रागिनी को आर्ट वर्क में बहुत ही मन लगता है और सिलाई, कढ़ाई एवं पेंटिंग में वो हमारी चैंपियन हैं !
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Last Updated: October 29, 2023 by PRAYOG - Professionals Alliance for Youths Growth
मेरे गाँव में कोरोना के समय बच्चों के लिए पुस्तकालय की शुरुआत
2020 के लॉकडाउन के दौरान मेरा चयन प्रयोग संस्था मे हुआ जो बच्चों के साथ पुःतकालय आधारित कार्य करती है | हमारे साथियों द्वारा हमारा प्रशिक्षण भी चल रहा था पर सभी स्कूल बंद थे | खेम मटहिनिया नाम का एक गाँव है जिसमे हमारे साथियो के सहयोग से लॉकडाउन के दौरान पुस्तकालय सत्र संचालित किया जाता है जिसे भी देखने को मिला और पहले तो हम सिर्फ कुछ दिनो तक देखे कार्यो को समझे प्रशिक्षण के बाद हम भी बच्चों मे घुल मिल गए | चार महीने बाद ‘बुकवर्म’ संस्था द्वारा हमारा ऑनलाइन एवं ऑफलाइन प्रशिक्षण हुआ | इस बीच स्कूल भी खुला और हम स्कूल मे भी पुस्तकालय सत्र संचालित करने लगे मगर वो भी कुछ दिन तक ही चला फिर अप्रैल 2021 में लॉक डाउन लग गया | फिर से स्कूल बंद हो गए और तब हम सभी साथियों ने तय किया की हम सभी एक-एक सामुदायिक पुस्तकालय खोलेंगे | मैं अपने भांजा से बात की जिसका नाम देवांश है, उसे पुस्तकालय के बारे मे नहीं पता था | मैं उसे बताई की हम तुम्हें कहानी की किताब देंगे तुम उसे एक सप्ताह पढ़ोगे फिर उसे जमा करोगे और दूसरी किताब लोगे |फिर एक दो किताब उसे पढ़ने को दिया और वह किताब उसे बहुत अच्छी लगी | वो अपने दोस्तो को लेकर मेरे पास आया | बच्चो को पुस्तकालय के बारे मे बताया और उसी दिन मैंने अपने गाव के कुछ लोगो से बात किया तथा सभी ने अपनी सहमति जाहीर की वे अपने घर के बच्चों को पुस्तकालय से जोड़ना चाहेंगे | मगर कुछ आदमी थे जो उन बच्चो के माँ – पिता तों नहीं, पड़ोसी थे और उन्होंने कहा सभी लोग करोना मे घर से बाहर नहीं निकलने दे रहे है और तुम बच्चो को किताब दोगी? मैं उन्हें तो कुछ नहीं बोली पर अपने साथियों से इस बात को साझा किया | हमलोग कोरोना से जो खलबली मची थी उसे कम होने का इंतजार करने लगे और अपने कार्यो मे ऑनलाइन के माध्यम से जुड़े रहे – किताबें पढ़ना, उन किताबों पे चर्चा करना और इस कार्य मे बुकवर्म टीम के लोग भी गोवा से जुड़े रहे | जब बिहार सरकार ने अनलॉक की घोषणा की और साथ ही गाँवों में कोरोना का खौफ और संख्या कुछ कम होते दिखा, तो हम बच्चो तक पहुँचने का सोचने लगे |
टीम के सभी साथी बहुत खुश थे, हम लोग ऑफिस आ गए और सभी ने अपना –अपना अनुभव साझा किया | एक सप्ताह मे हमारा सामुदायिक पुस्तकालय सत्र माधोमाठ मे भी शुरू हो जाएगा | यहां बच्चो के संख्या के अनुसार हो सकता है या दो गाँव है तो दो पुस्तकालय खुलेगा | बच्चे बहुत उत्साहित थे और आज तो मेरे घर गाँव की दो औरतें भी आई थी जो उन्ही बच्चों में किसी की दादी थी और किसी की माँ थी | वे पूछने आई थी की वे अपने घर के बच्चों को कब से भेजना शुरू करें? मैंने उन्हें साझा किया की बस, दो से तीन दिन और, उसके बाद पुस्तकालय शुरू हो जाएगा | गाँव के सभी बच्चे इस पुस्तकालय में आकर अपने मन पसंद की किताब पढ़ पाएंगे और घर भी ले जा सकते हैं |
* इस ब्लॉग को रागिनी ने लिखा है | रागिनी पिछले 9 महीनों से प्रयोग के साथ जुड़कर बच्चों के साथ काम कर रही हैं | बच्चों के साथ बात करना, कहानियां सुनना और सुनाना इन्हे बहुत ही पसंद है | अपने मेहनत और टीम के साथ चर्चा करते-करते आज इनकी किताबों के प्रति समझ बढ़ी है और ये अपने समुदाय के बच्चों तक पुस्तकालय की पहुँच बनाने की कोशिश में लगी हुई हैं | रागिनी को आर्ट वर्क में बहुत ही मन लगता है और सिलाई, कढ़ाई एवं पेंटिंग में वो हमारी चैंपियन हैं !
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