PRAYOG, Ground Floor, 'Prerana' Niwas, Urja Nagar, Khagaul Road, Danapur, Patna - 801503 contact@prayog.org.in +91 98017 64664

शिक्षकों के साथ ‘बुक डिस्प्ले’ – दूसरे सत्र का अनुभव

शिक्षकों के लिए डिस्प्ले का एक भाग आप लोगों ने पिछले सप्ताह पढ़ा |  इस सप्ताह क्या उनका ऊर्जा बना रहेगाक्या वे किताबों से जुड़े रह पाएंगेमेरे सामने किस प्रकार की चुनौतियाँ आईइन सभी बातों को जाने के लिए मेरे अनुभव को एक बार जरूर पढ़ें और उचित सलाह दें |
दूसरे डिस्प्ले का उद्देश्य शिक्षकों को बाल साहित्य के भिन्न-भिन्न पहलुओं तथा पुस्तकालय के किताबों में विविधता से रूबरू कराना था |
20 जनवरी 2020 को दूसरा डिस्प्ले लगा | इस दिन मैंने तीन किताबों का बूक टॉक किया था –
“काली और धामिन साँप”, “रानू मैं क्या जानू ?” और “मुकुन्द और रियाज़”
| विद्यालय में उपस्थित सभी शिक्षकों ने भाग लिया और चर्चा बहुत अच्छी चली |  | मैं बहुत खुश था और मन में बहुत सी आशाएं लेकर विद्यालय से चल दिया |
27 जनवरी 2020 को मैं पुनः शेरपुर विद्यालय पहुँचा, प्रधानाचार्य से मिला और उन्होंने बताया की सभी शिक्षक आपका इस बार फिर से इंतज़ार कर रहे हैं | अभी लंच में कुछ समय बाकी है, आप बैठिये | 
मैं ऑफिस में बैठकर लेन-देन पंजी देख रहा और खुश था की सभी ने किताबे जारी किया था |  टेबल पर भी कम किताबे थी और मैं अंदर ही अंदर सोचने लगा की आज चर्चा गंभीर होने वाली है | तभी लंच की घंटी बजी | सभी शिक्षक आए और वे मुझे देखकर एक प्यारी मुस्कान से मेरा स्वागत किया | मैंने भी सभी को नमस्कार किया और सत्र को आगे बढ़ाया | 

प्रधानाचार्य जीतेन्द्र सर द्वारा “बाल्टी के अंदर समंदर” पर Book Talk एवं चर्चा27 जनवरी

मैं कुछ कहता उससे पहले प्रधानाचार्य उठे और बोले की आप बैठिए आज मैं शुरू करता हूँ, यह सुनते ही मैं सोचने लगा की अब सर क्या करेंगे ? अगर ऐसा सवाल पूछ दिये और मैं नहीं बताया तो क्या सोचेंगे ? न जाने कुछ ही समय में मैं क्या-क्या सोचने लगा था | लेकिन जब उन्होने किताब उठाया तो जान में जान आई | उन्होने “बाल्टी के अंदर समंदर” किताब के बारे में चर्चा शुरू किया | उन्होने कहा की इस किताब में अक्षर तो बहुत कम लिखा है लेकिन इस किताब पर बच्चों से बहुत अच्छी चर्चा हो सकती है | हमलोग बच्चों को जलचक्र के बारे में बताते हैं की वर्षा कैसे होती है ? उसी पर आधारित किताब है | इस किताब के मदद से बच्चों को जलचक्र की पूरी प्रक्रिया को बता सकते है और इसमें बहुत ही अच्छे-अच्छे चित्र हैं  | मैंने इस किताब का नाम पढ़ा और इसके तरफ आकर्षित हो गया की इस किताब का नाम ‘बाल्टी के अंदर समंदर’ है और क्या सच में बाल्टी में समंदर हो सकता है ? इस किताब को पढ़ने के बाद मुझे लगा की हाँ – बाल्टी के अंदर समंदर हो सकता है,  बस हमें देखने और सोचने का नजरिया चाहिए |

रीता मैडम द्वारा “ख़त” पर Book Talk एवं चर्चा27 जनवरी

उसके बाद रीता मैडम ने “खत” किताब के बारे में चर्चा किया | उन्होने
बताया की इस किताब को देखते ही  इस किताब को उठा लिया क्योंकि मुझे अपने बचपन
की याद आई | मैं बचपन में बार बार सोचती थी की पत्र आते कैसे हैं ? उसको मेरे घर के
बारे में कैसे पता है ? इस किताब को देखते ही बचपन के मेरे प्रश्न मेरे मन में आने
लगा और मैं इस किताब के तरफ आकर्षित हो गई | मैं दादा जी से पूछती की यह पत्र कैसे
आते हैं तो वे बोलते की यह हवाई पत्र है | इस पत्र पर टिकट लगा देने पर आ जाता है
| बचपन में जो कुछ सुनते थे उसे ही सच मानते थे और मैं भी जब पत्र आता तो उसको ‘हवाई
पत्र’ के नाम से पुकारती थी | जब मैं बड़ी हुई और पत्र के बारे में जानी, लेकिन आज हमारे
से बहुत दूर चले  गए हैं ये पत्र, अब तो कोई पत्र ही नहीं आता | इस किताब को पढ़ा
तो बचपन की बहुत सी प्रश्नों का जबाब मिला | इस किताब को पढ़ कर बहुत मज़ा आया |


 

पुष्पा मैडम द्वारा “रानू मैं क्या जानू ?” पर Book Talk एवं चर्चा27 जनवरी

उसके बाद पुष्पा मैडम ने असघर वजाहत जी के द्वारा लिखी
“रानू मैं क्या जानूँ
 किताब का बूक टॉक किया | उन्होने इस किताब के बारे में बताते हुए कहा की इस किताब में एक बच्चा अपने पिता से बहुत प्रश्न पूछता है और उसके पिता उनका जवाब देते हैं | कहानी में रानू ने जो भी प्रश्न पूछा, बाकी बच्चे भी ठीक इसी प्रकार के प्रश्न पूछते हैं | वे जो भी देखते हैं उसके बारे में जानने के लिए लालायित हो जाते हैं | पर इधर जब बच्चे इस प्रकार के प्रश्न पूछते हैं तो हमलोग डाँट देते हैंलेकिन इस किताब को पढ़ने के बाद मुझे लगता है की हमे बच्चों के प्रश्नों को सुनना
होगा –
 बच्चा चाहे स्कूल का हो या घर का, हमें
एक ऐसा माहौल तैयार करना चाहिए की वे हमसे बिना डरे प्रश्न पूछ सके
 | इस किताब में जो वार्तालाप हुआ है वाकई में सोचने को मजबूर करता है | हमलोग भी बचपन में बहुत प्रश्न पूछते थे लेकिन धीरे-धीरे प्रश्न पूछने की क्षमता
को दबाया जाने लगा
 | पुष्पा मैडम के बातों
से सभी सहमत थे और उन्होने कहा की इस किताब को सभी लोगों ने पढ़ा है
 |  उन्होने अपना व्यक्तिगत अनुभव साझा करते हुये कहा की जब मैं घर जाती हूँ और मेरे पति शाम
को घर आते हैं तो पूछते हैं की क्या कोई किताब लाई हो
 ? हाँ बोलते ही वह मेरे पास आ जाते हैं – वह किताबों को पढ़ते और बोलते की मैं कहानी बताऊँ | मैं मना कर देती की मुझे नहीं सुनना है, मैं खुद पढूँगी | मैंने देखा की पिछले कुछ दिनों से हमलोग मोबाइल कम चला रहे हैं और किताबों को खूब
पढ़ कर आपस में चर्चा कर रहे हैं
 | मुझे तो बहुत अच्छा लगता है की वे भी किताबों को पढ़ते है और मुझसे चर्चा करते है |
अमरावती मैडम ने अपना अनुभव साझा करते हुए कहा की किताब
पढ़ने का एक नया जुनून लग गया है
 | इस तरह की किताबे हमने तो कभी नहीं पढ़ी लेकिन इन किताबों को पढ़ने के बाद यह लगता
है की और किताब पढ़ती रहूँ
 |  
उसके बाद बबलू सर ने “शोभना” किताब के बारे में बताते हुए कहा की इस किताब में एक शिक्षक का रूप कैसा होना चाहिए, इसके बारे में दिया गया है | किस प्रकार हम अपने आस पास के वातावरण से जोड़कर बच्चों को पढ़ा सकते और पढ़ाई को
रोचक बना सकते है
 | किस प्रकार से  बच्चे और शिक्षक का क्या संबंध होना चाहिए – इनके बारे में बताया गया है | इस किताब में कई सारे मकसद हैं और सभी को बखूबी से बताया गया है |
दिनेश सर ने अपना अनुभव साझा करते हुए कहा की मैंने सभी
शिक्षकों से
“काश” किताब के बारे में सुना था, इसलिए मैंने इस किताब को पढ़ा | जो सुना था उससे भी अधिक समझने को मिला |  उन्होने बताया की अभी प्रशिक्षण में है और जिस दिन इस किताब को पढ़ा उसके अगले दिन
ही इसी विषय पर प्रशिक्षण था
 | मैंने इस किताबे के बारे में सबसे चर्चा किया, चर्चा समाप्त होने की नाम नहीं लेती है | 

इन सभी बातों पर चर्चा करते करते समय कैसे बीतता चला गया पता ही नहीं चला लेकिन मुझे तो समय को भी ध्यान में रखना है | फिर मैंने “ईस्मत की ईद” किताब का बूक टॉक किया | उसके बाद कहा की दूसरे डिस्प्ले का भी समय समाप्त होने जा रहा है | उन्होने कहा की और दो दिन इन किताबों को रखा जाए और फिर सभी शिक्षकों ने तय किया की वे 31 जनवरी या 1 फरवरी को फिर चर्चा करेंगे और तब इस समापन किया
जायेगा
 | 

पिछले एक महीने में शिक्षकों का उत्साह देखने लायक है | अभी तक चर्चा में सभी ने भाग लिया लेकिन आज भी महिलाओं का उत्साह पुरुषों से अधिक था | सभी ने अपने-अपने अनुभव को अपने वास्तविक जीवन से जोड़ने की कोशिश की | सत्र समाप्त होने के बाद मेरे मन में एक प्रश्न आया की क्या हम जो कर रहे है वह
ठीक है 
? कहीं ऐसा तो नहीं हो रहा है की किताब
पढ़ने के होड़ में बच्चों को छोड़ दिया और केवल किताब ही पढ़ रहे है
 ? वर्ग में भी किताब पढ़ रहे है | अगर ऐसा हुआ तो क्या यह सही है? खैर, वक़्त आने पर यह भी पता चल जायेगा | 

अगले भाग में अपने प्रश्नों को खोजते हुये और शिक्षकों द्वारा लिखे हुए अनुभवों के
साथ आप से फिर मिलूंगा ! 



* इस ब्लॉग को प्रयोग के बिनीत रंजन के द्वारा लिखा गया है | हम बुकवर्म, गोवा को धन्यवाद देते हैं की पुस्तकालय के इस आयाम के लिए हमे निरंतर प्रेरित और मदद कर रहे हैं 


Share

Leave a Reply

Your email address will not be published.