PRAYOG, Ground Floor, 'Prerana' Niwas, Urja Nagar, Khagaul Road, Danapur, Patna - 801503 contact@prayog.org.in +91 98017 64664

कौतूहल

लॉक डाउन में बच्चों को सामुदायिक लाइब्रेरी से जोड़ने का प्रयास*
पिछले 4 वर्षों में यूँ तो हमने लाइब्रेरी आधारित कार्य सरकारी विद्यालयों तक सीमित कर रखा था पर इस ‘कोरोना काल’ ने हमें यह प्रेरित किया की हम अपने सीमाओं के पार भी झांकें | हमने कभी नही सोचा था की ऐसा दिन देखना होगा पर शायद इसलिए कहा जाता है की चुनौती भरे परिस्थितियों में ही काम करने का असली मज़ा है | 
मार्च महीने से विद्यालय कोरोना को लेकर बंद हो गए और इसलिए हमें भी कुछ ख़ास समझ नहीं आ रहा था की क्या करें – बस घर पर रहना और किताबें पढ़ना, पर मन विचलित था | एक टीम के रूप में हमने अपने चर्चा को जारी रखा | एक प्रस्ताव आया की क्यों न बच्चों से मिलें और उन तक किताब पहुंचाना सुनिश्चित करें? प्रस्ताव पढ़ने में तो बहुत अच्छा लगता मगर इस समय हम जाये कैसे, यह चुनौती हमारे सामने बनी रही | मन में बहुत सारे प्रश्न थे की समुदाय हमे अपनायेगा या नहीं ? बच्चे आएंगे या नहीं ? बस यही सोच-सोच कर हम अपने प्लान को टालते रहें | कई बार मन में नकारात्मक बाते ही आती पर यह सभी ने सोच रखा था की इसके पार जाना है – और हमारे चर्चा के केंद्र में बच्चे और इस परिस्थित में उनकी समस्याएं ही केंद्र में थी | उसके बाद हम सभी साथियों ने चर्चा किया और चर्चा से निकल कर आया की अब हमे कुछ करना होगा क्योंकि समय ऐसे ही रहेगा – इस फैसले तक पहुँचने के लिए हमें लग भाग 2 महीने लग गए | पर इस बीच, हम बच्चों को अन्य माध्यम से कहानी से जोड़ने में सफल रहे क्योंकि ऐसा हमने लगभग 1 महीने तक कर के देखा और तब हमें विश्वास हो पाया की ऐसे परिस्थिति में सामुदायिक पुस्तकालय की तरफ हमें आगे बढ़ना चाहिए | उसके बाद हमने एक योजना तैयार किया की शिक्षकों के माध्यम से समुदाय के पास पहुंचेगे | हमने तीन स्कूल का भ्रमण किया – स्कूल के सभी शिक्षक और प्रधानाध्यापक ने कहा की बहुत अच्छा योजना है, मगर कोरोना के पश्चात शुरू करने का आश्वासन दिया | बार-बार यही सवाल सामने आता की हम करें क्या? उसके बाद हमने कुछ शिक्षकों से फोन से बात किया तो उन्होने भी कहा की बहुत अच्छा है हमलोग सोचते है पर इस सोच में लगभग एक महीने गुजर गये | पर हमें कहीं न कहीं पता था की यदि हम अपने प्रयास में लगे रहें तो ज़रूर कोई रास्ता मिल जायेगा | 
हमारे कोशिश करने का उद्देश्य यही था की कैसे हम समुदाय आधारित लाइब्रेरी कार्य शुरू कर सकें | अफ़सोस नहीं हो रहा था क्योंकि बहुत ही स्वाभाविक था की स्कूल बंद होने के अवस्था में कोई भी शिक्षक इसके लिए तैयार नहीं होंगे पर हमारे लिए एक बड़ा सवाल था – क्या हम बच्चों को किताबों से वंचित रखें, क्या उनके सोच और उनके अनुभवों को दबाये रखें? चाहे कितनी बड़ी विप्पति ना आ जाये दुनिया में, क्या हमें प्रयास करना छोड़ देना चाहिए?
एक दिन की बात है हमारे पास उत्क्रमित मध्य विद्यालय खेम मटिहनिया के प्राचार्य का फोन आया और उनसे बातों बातों में हमने सामुदायिक पुस्तकालय की परिकल्पना को साझा किया | उन्होंने सुझाव दिया की यदि कोरोना में चल रहे सावधानियों को ध्यान में रख कर यदि ‘प्रयोग’ इसका सञ्चालन कर सकता है तो यह अच्छा होगा और समुदाय से वो हमें जोड़ने में मदद भी कर सकते हैं | खेम मटिहनिया के बाकी शिक्षकों के साथ भी जब यह चर्चा हुआ तो उन्हें सामुदायिक पुस्तकालय का प्रस्ताव अच्छा लगा और यहाँ तक की एक शिक्षिका, जो उसी गाँव की रहने वाली हैं, उन्होंने अपने घर से इसे सञ्चालन करने का हमें न्योता भी दे दिया | पर सुझाव आया की गाँव के लोगों से तो बात करना ही पड़ेगा | 
अब तो हमारे उत्साह का ठिकाना ही नहीं था और हमें अब इंतज़ार था तो सामुदायिक बैठक का – यह बैठक कैसा रहा होगा? हमने इसके लिए क्या तैयारी किया? समुदाय से क्या – क्या सवाल आएं ? बहुत ही रोचक बातें हुईं और अगले ब्लॉग में उस कड़ी को साझा करेंगे | 
* इस ब्लॉग को प्रयोग के सदस्य, बिनीत रंजन और कैलाश ने लिखा है | सामुदायिक पुस्तकालय के इस प्रयास को कुचायकोट प्रखंड के खेम मटिहनिया गाँव में किया जा रहा है जो गंडक नदी के किनारे बसा हुआ है – अभी तक 58 बच्चे इससे जुड़े हैं और नियमित किताबों का लेन देन कर रहे हैं | 64% भागीदारी बच्चियों की है और इसमें भी कक्षा 6 से 8 (early adolescent age group) से ज़यादा रुझान है | क्या कोई ख़ास वजह हो सकता है, शायद इसे हमें और बारीकी से समझने की ज़रूरत है | 
बच्चों द्वारा इस्तेमाल किया जा रहा लेन – देन कार्ड (lending card) 

पान्डेमिक के दौरान लाइब्रेरी के कुछ प्रयास और ‘प्रयोग’ के अनुभव

पिछले 4 महीने हम सभी के लिए चुनौतीपूर्ण रहा है और ऐसा
कई बार हुआ जो हमें कुछ सोचने के लिए मजबूर किया: क्या विकास के जो ढकोसले हम
पिछले कई वर्षों से पूरे विश्व और भारत में सुनते आ रहे थे
, वो एक दिखावा नहीं था? क्या बीते 4 महीनों ने हमें
यह नहीं दिखा दिया की
समताका जो मुखौटा है वह केवल पढ़ने सुनने के लिए है?
बच्चों की बात करें तो क्या कोई भी सटीक तरीका
अपनाया गया की हम उनके मन में उठ रहे डर या जिज्ञासा या उतावलेपन को लेकर उनके साथ
बात कर सकें
? क्या पढ़ाने के लिए ऑनलाइन
जरिया का ही इस्तेमाल हो सकता था
? कितने बच्चों के
पास ऑनलाइन पढ़ने के लिए मौलिक सुविधाएँ या संसाधन भी हैं
? ऐसे कई सवाल हमारे मन में भी कौतुहल कर रहे थे और हमने
बच्चों के साथ अपने लाइब्रेरी के सफर को जारी भी रखा और हमने कुछ चीज़ों को सीखते
हुए अपने तरीके में परिवर्तन भी किया
|
1. ‘चलो पढ़ें‘:
20 मई – 20 जून तक

हमारा अनुभव कहता है कि
बच्चों को कहानियां पसंद हैं और लॉकडाउन अवधि में
10 से 15 वर्ष की आयु के
बच्चों के लिए एक
स्टोरी रीडिंग
इवेंट
शुरू किया और उनके लिए
प्रोत्साहन भी सुनिश्चित किया। एक महीने की अवधि में
15 अनूठी कहानियों को व्हाट्सप्प के माध्यम से साझा किया गया
जो हमने अरविन्द गुप्ता टॉयज वेबसाइट से पढ़ कर और चर्चा कर चुना था
| हमने कभी नहीं सोचा था कि यह 10 जिलों: बिहार के पटना, मुजफ्फरपुर, पूर्वी चंपारण,
पश्चिम चंपारण, सीवान और गोपालगंज और UP के बहराइच, बलरामपुर,
लखनऊ और गाजियाबाद में बच्चों तक पहुंचेगा। 88 बच्चों ने इसमें हिस्सा लिया और इनमे से 48 नियमित रूप से डिज़ाइन किये गए गतिविधियों के
द्वारा हमारे साथ एक्टिव रहें
| यह उनके
माता-पिता के समर्थन के बिना संभव नहीं था और कुछ माता-पिता वास्तव में हमें जवाब
दे रहे थे की “इस पहल के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
, यहां तक कि मुझे आज पता चला कि मेरा बच्चा इस
तरह सोच कर जवाब दे भी सकता है”
हम यहाँ उन्हें diverse
कहानियों से रूबरू कराने का प्रयास कर रहे थे
जो उन्हें उनके आस पास की दुनिया को समझने और सोचते रहने में उनके सहयोगी बन सकें
|
2. खेम मटिहनिया
गाँव में सामुदायिक लाइब्रेरी:
10 जुलाई से शुरू

खेम मटिहनिया, गंडक नदी के किनारे बसा हुआ गाँव है (गोपालगंज
जिला
, बिहार) और हर साल बाढ़ से
प्रभावित होता है – यहां के सरकारी विद्यालय में हमारा लाइब्रेरी सत्र पहले से
चलता आ रहा था लेकिन लॉकडाउन में सभी विद्यालय बंद हैं
| जब हम वहां गाँव में जाकर बच्चों से बात करना चाहे तो वहीँ
के समुदाय
, ख़ास कर माताओं से यह
डिमांड हुआ की हम बच्चों को कुछ किताबें पढ़ने के लिए दें और इसके लिए गाँव से ही
एक व्यक्ति ने अपने घर से इसके सञ्चालन के लिए तुरंत जगह भी दे दिया
|
प्रयोग टीम ने बच्चों से
ही राय लिया की इसके लिए बिना भीड़ लगे कैसे लाइब्रेरी की दो मुख्य कार्य किया जा
सके: डिस्प्ले और लेंडिंग
| इस गाँव में ही 200 से ज़्यादा बच्चे हैं और हमें यह भी सुनिश्चित
करना था की बच्चे जब किताब चुनने या लेने आये तो उस स्थान में एक समय पर
25 से 30 ही हो ताकि फिजिकल दूरी
बने रहे
| उन्होंने ही अपने कक्षा
के अनुसार एक रोस्टर बना दिया और हम उस रोस्टर में तय दिन और समय पर लाइब्रेरी
स्थल पर जाते हैं और किताबों का लेन – देन करते हैं
| हमने हर कहानी के लिए एक वर्कशीट भी बनाया है जिसमे बच्चा
पूछे गए सवाल को लिख कर या चित्र बना कर या दोनों ही तरीके से भर कर हमें वापस
देते हैं
|
हमने दोनो ही तरीको को
आज़मा कर देखा लेकिन जो मज़ा आमने सामने किताब को देने और लेने में है
, उसकी बात ही कुछ और है | एक बात तो पक्का है – इस वक़्त बच्चों के पास कहानियों की
कमी है
, स्कूल एजुकेशन प्रणाली ने
कहानी के किताबों को तवज्जु नहीं दिया और घर पर भी इसके लिए माहौल बनाने का कोई
प्रयास नहीं किया गया
| पर जो रिस्पांस
हमें बच्चों
, उनके शिक्षकों और
अभिभावकों से मिला
, उससे इतना तो पता
चला की लाइब्रेरी एडुकेटर के रूप में यह हम सभी के लिए सबसे मज़ेदार समय भी है!

जेंडर आधारित भेद भाव और महिला के मज़बूत आवाज़ ने इस बच्ची को इतना मन्त्रमुग्ध किया की उसने कहानी में दर्शाये हुए चित्र को अपने तरीके से बना डाला 

शिक्षकों के साथ ‘बुक डिस्प्ले’ – दूसरे सत्र का अनुभव

शिक्षकों के लिए डिस्प्ले का एक भाग आप लोगों ने पिछले सप्ताह पढ़ा |  इस सप्ताह क्या उनका ऊर्जा बना रहेगाक्या वे किताबों से जुड़े रह पाएंगेमेरे सामने किस प्रकार की चुनौतियाँ आईइन सभी बातों को जाने के लिए मेरे अनुभव को एक बार जरूर पढ़ें और उचित सलाह दें |
दूसरे डिस्प्ले का उद्देश्य शिक्षकों को बाल साहित्य के भिन्न-भिन्न पहलुओं तथा पुस्तकालय के किताबों में विविधता से रूबरू कराना था |
20 जनवरी 2020 को दूसरा डिस्प्ले लगा | इस दिन मैंने तीन किताबों का बूक टॉक किया था –
“काली और धामिन साँप”, “रानू मैं क्या जानू ?” और “मुकुन्द और रियाज़”
| विद्यालय में उपस्थित सभी शिक्षकों ने भाग लिया और चर्चा बहुत अच्छी चली |  | मैं बहुत खुश था और मन में बहुत सी आशाएं लेकर विद्यालय से चल दिया |
27 जनवरी 2020 को मैं पुनः शेरपुर विद्यालय पहुँचा, प्रधानाचार्य से मिला और उन्होंने बताया की सभी शिक्षक आपका इस बार फिर से इंतज़ार कर रहे हैं | अभी लंच में कुछ समय बाकी है, आप बैठिये | 
मैं ऑफिस में बैठकर लेन-देन पंजी देख रहा और खुश था की सभी ने किताबे जारी किया था |  टेबल पर भी कम किताबे थी और मैं अंदर ही अंदर सोचने लगा की आज चर्चा गंभीर होने वाली है | तभी लंच की घंटी बजी | सभी शिक्षक आए और वे मुझे देखकर एक प्यारी मुस्कान से मेरा स्वागत किया | मैंने भी सभी को नमस्कार किया और सत्र को आगे बढ़ाया | 

प्रधानाचार्य जीतेन्द्र सर द्वारा “बाल्टी के अंदर समंदर” पर Book Talk एवं चर्चा27 जनवरी

मैं कुछ कहता उससे पहले प्रधानाचार्य उठे और बोले की आप बैठिए आज मैं शुरू करता हूँ, यह सुनते ही मैं सोचने लगा की अब सर क्या करेंगे ? अगर ऐसा सवाल पूछ दिये और मैं नहीं बताया तो क्या सोचेंगे ? न जाने कुछ ही समय में मैं क्या-क्या सोचने लगा था | लेकिन जब उन्होने किताब उठाया तो जान में जान आई | उन्होने “बाल्टी के अंदर समंदर” किताब के बारे में चर्चा शुरू किया | उन्होने कहा की इस किताब में अक्षर तो बहुत कम लिखा है लेकिन इस किताब पर बच्चों से बहुत अच्छी चर्चा हो सकती है | हमलोग बच्चों को जलचक्र के बारे में बताते हैं की वर्षा कैसे होती है ? उसी पर आधारित किताब है | इस किताब के मदद से बच्चों को जलचक्र की पूरी प्रक्रिया को बता सकते है और इसमें बहुत ही अच्छे-अच्छे चित्र हैं  | मैंने इस किताब का नाम पढ़ा और इसके तरफ आकर्षित हो गया की इस किताब का नाम ‘बाल्टी के अंदर समंदर’ है और क्या सच में बाल्टी में समंदर हो सकता है ? इस किताब को पढ़ने के बाद मुझे लगा की हाँ – बाल्टी के अंदर समंदर हो सकता है,  बस हमें देखने और सोचने का नजरिया चाहिए |

रीता मैडम द्वारा “ख़त” पर Book Talk एवं चर्चा27 जनवरी

उसके बाद रीता मैडम ने “खत” किताब के बारे में चर्चा किया | उन्होने
बताया की इस किताब को देखते ही  इस किताब को उठा लिया क्योंकि मुझे अपने बचपन
की याद आई | मैं बचपन में बार बार सोचती थी की पत्र आते कैसे हैं ? उसको मेरे घर के
बारे में कैसे पता है ? इस किताब को देखते ही बचपन के मेरे प्रश्न मेरे मन में आने
लगा और मैं इस किताब के तरफ आकर्षित हो गई | मैं दादा जी से पूछती की यह पत्र कैसे
आते हैं तो वे बोलते की यह हवाई पत्र है | इस पत्र पर टिकट लगा देने पर आ जाता है
| बचपन में जो कुछ सुनते थे उसे ही सच मानते थे और मैं भी जब पत्र आता तो उसको ‘हवाई
पत्र’ के नाम से पुकारती थी | जब मैं बड़ी हुई और पत्र के बारे में जानी, लेकिन आज हमारे
से बहुत दूर चले  गए हैं ये पत्र, अब तो कोई पत्र ही नहीं आता | इस किताब को पढ़ा
तो बचपन की बहुत सी प्रश्नों का जबाब मिला | इस किताब को पढ़ कर बहुत मज़ा आया |


 

पुष्पा मैडम द्वारा “रानू मैं क्या जानू ?” पर Book Talk एवं चर्चा27 जनवरी

उसके बाद पुष्पा मैडम ने असघर वजाहत जी के द्वारा लिखी
“रानू मैं क्या जानूँ
 किताब का बूक टॉक किया | उन्होने इस किताब के बारे में बताते हुए कहा की इस किताब में एक बच्चा अपने पिता से बहुत प्रश्न पूछता है और उसके पिता उनका जवाब देते हैं | कहानी में रानू ने जो भी प्रश्न पूछा, बाकी बच्चे भी ठीक इसी प्रकार के प्रश्न पूछते हैं | वे जो भी देखते हैं उसके बारे में जानने के लिए लालायित हो जाते हैं | पर इधर जब बच्चे इस प्रकार के प्रश्न पूछते हैं तो हमलोग डाँट देते हैंलेकिन इस किताब को पढ़ने के बाद मुझे लगता है की हमे बच्चों के प्रश्नों को सुनना
होगा –
 बच्चा चाहे स्कूल का हो या घर का, हमें
एक ऐसा माहौल तैयार करना चाहिए की वे हमसे बिना डरे प्रश्न पूछ सके
 | इस किताब में जो वार्तालाप हुआ है वाकई में सोचने को मजबूर करता है | हमलोग भी बचपन में बहुत प्रश्न पूछते थे लेकिन धीरे-धीरे प्रश्न पूछने की क्षमता
को दबाया जाने लगा
 | पुष्पा मैडम के बातों
से सभी सहमत थे और उन्होने कहा की इस किताब को सभी लोगों ने पढ़ा है
 |  उन्होने अपना व्यक्तिगत अनुभव साझा करते हुये कहा की जब मैं घर जाती हूँ और मेरे पति शाम
को घर आते हैं तो पूछते हैं की क्या कोई किताब लाई हो
 ? हाँ बोलते ही वह मेरे पास आ जाते हैं – वह किताबों को पढ़ते और बोलते की मैं कहानी बताऊँ | मैं मना कर देती की मुझे नहीं सुनना है, मैं खुद पढूँगी | मैंने देखा की पिछले कुछ दिनों से हमलोग मोबाइल कम चला रहे हैं और किताबों को खूब
पढ़ कर आपस में चर्चा कर रहे हैं
 | मुझे तो बहुत अच्छा लगता है की वे भी किताबों को पढ़ते है और मुझसे चर्चा करते है |
अमरावती मैडम ने अपना अनुभव साझा करते हुए कहा की किताब
पढ़ने का एक नया जुनून लग गया है
 | इस तरह की किताबे हमने तो कभी नहीं पढ़ी लेकिन इन किताबों को पढ़ने के बाद यह लगता
है की और किताब पढ़ती रहूँ
 |  
उसके बाद बबलू सर ने “शोभना” किताब के बारे में बताते हुए कहा की इस किताब में एक शिक्षक का रूप कैसा होना चाहिए, इसके बारे में दिया गया है | किस प्रकार हम अपने आस पास के वातावरण से जोड़कर बच्चों को पढ़ा सकते और पढ़ाई को
रोचक बना सकते है
 | किस प्रकार से  बच्चे और शिक्षक का क्या संबंध होना चाहिए – इनके बारे में बताया गया है | इस किताब में कई सारे मकसद हैं और सभी को बखूबी से बताया गया है |
दिनेश सर ने अपना अनुभव साझा करते हुए कहा की मैंने सभी
शिक्षकों से
“काश” किताब के बारे में सुना था, इसलिए मैंने इस किताब को पढ़ा | जो सुना था उससे भी अधिक समझने को मिला |  उन्होने बताया की अभी प्रशिक्षण में है और जिस दिन इस किताब को पढ़ा उसके अगले दिन
ही इसी विषय पर प्रशिक्षण था
 | मैंने इस किताबे के बारे में सबसे चर्चा किया, चर्चा समाप्त होने की नाम नहीं लेती है | 

इन सभी बातों पर चर्चा करते करते समय कैसे बीतता चला गया पता ही नहीं चला लेकिन मुझे तो समय को भी ध्यान में रखना है | फिर मैंने “ईस्मत की ईद” किताब का बूक टॉक किया | उसके बाद कहा की दूसरे डिस्प्ले का भी समय समाप्त होने जा रहा है | उन्होने कहा की और दो दिन इन किताबों को रखा जाए और फिर सभी शिक्षकों ने तय किया की वे 31 जनवरी या 1 फरवरी को फिर चर्चा करेंगे और तब इस समापन किया
जायेगा
 | 

पिछले एक महीने में शिक्षकों का उत्साह देखने लायक है | अभी तक चर्चा में सभी ने भाग लिया लेकिन आज भी महिलाओं का उत्साह पुरुषों से अधिक था | सभी ने अपने-अपने अनुभव को अपने वास्तविक जीवन से जोड़ने की कोशिश की | सत्र समाप्त होने के बाद मेरे मन में एक प्रश्न आया की क्या हम जो कर रहे है वह
ठीक है 
? कहीं ऐसा तो नहीं हो रहा है की किताब
पढ़ने के होड़ में बच्चों को छोड़ दिया और केवल किताब ही पढ़ रहे है
 ? वर्ग में भी किताब पढ़ रहे है | अगर ऐसा हुआ तो क्या यह सही है? खैर, वक़्त आने पर यह भी पता चल जायेगा | 

अगले भाग में अपने प्रश्नों को खोजते हुये और शिक्षकों द्वारा लिखे हुए अनुभवों के
साथ आप से फिर मिलूंगा ! 



* इस ब्लॉग को प्रयोग के बिनीत रंजन के द्वारा लिखा गया है | हम बुकवर्म, गोवा को धन्यवाद देते हैं की पुस्तकालय के इस आयाम के लिए हमे निरंतर प्रेरित और मदद कर रहे हैं 


शिक्षकों के साथ ‘बुक डिस्प्ले’ पर मेरा अनुभव


बच्चों के लिए तो किताबों का डिस्प्ले बहुत बार लगाया था, लेकिन जब बात शिक्षकों की आई की मुझे शिक्षकों के लिए ‘Book Display’ लगाना होगा तो मुझे बहुत डर लगा |  मैं तो बहुत प्रयास किया की यह ना हो, मन में बहुत सी नकारात्मक बाते लेकर मैंने इस कार्य को शुरू किया क्योंकि अंदर ही अंदर बहुत डरा हुआ था | 
“क्या यह मैं कर पाऊँगा ?” – मेरे दिल और दिमाग में बस यह सवाल ही था |  

08 जनवरी 2020 को ‘उत्क्रमित मध्य मध्य विद्यालय शेरपुर’ में डिस्प्ले लगाने निकल पड़ा | वहां के प्रधानाध्यापक से पहले ही चर्चा कर लिया था की आपके ऑफिस में मैं एक डिस्प्ले लगाना चाहता हूँ और उन्होने बहुत ही उत्साह के साथ मुझे ‘हाँ’ कहा था |  

पहला डिस्प्ले लगा, जिसका विषय था  “महिलाओं की आवाज” | डिस्प्ले लगाया और चार किताबों का बूक टॉक किया – “मितवा”“काश मुझे किसी ने बताया होता”“क्यों क्यों लड़की”“स्त्री पत्र” | 20 मिनट का समय मिला था और वह समाप्त हो रहा था | मैं वहाँ पर 10 नोटबूक और पेंसिल रख दिया | उसके बाद उन्होंने मुझसे एक प्रश्न किया जिसका मुझे पहले से ही डर था– “क्या अब हमलोग भी पढ़ेंगे ? कोई नया अभियान आ गया क्या ?”  मुझे पता था की यह प्रश्न जरूर आयेगा, इसलिए मैंने अपना उत्तर तैयार रखा था, मैंने कहा की पुस्तकालय की कुछ किताबें रख रहा हूँ, अगर समय मिले तो इन किताबों को आप देख सकते हैं की यह हमारे पुस्तकालय में रहे या नही |  उसके बाद सत्र समाप्त हुआ और मैं प्रधानाध्यापक और शिक्षकों को धन्यवाद दिया |

‘महिलाओं की आवाज’ theme पर Book display, 08 जनवरी 

बिनीत द्वारा “क्यूँ  क्यूँ  लड़की” पर Book Talk, 08 जनवरी 
बिहार में ठण्ड बहुत पड़ रही थी और विद्यालय शीतलहर के कारण 11 दिनों के लिए बंद हो गया | मन ही मन सोचा की अब काहे को कोई किताब पढ़ेगा, डिस्प्ले वैसा ही लगा रह जायेगा | 20 जनवरी 2020 को विद्यालय खुला और मैं दूसरा ‘डिस्प्ले’ लगाने के लिए कुछ किताब उठाया और चल दिया | जैसे ही स्कूल पहुँचा और बाइक से उतरा वैसे ही मीना मैडम आई और बोली – “इतना पतली नोटबूक क्यों रखे थे ? मैंने तो पूरा भर दिया है |” मैं कुछ समझता की प्रधानाध्यापक जीतेन्द्र सर से मिला, और उन्होंने कहा की आपका कार्य सफल रहा – “स्कूल में बच्चे नहीं आ रहे थे लेकिन हमलोग आ रहे थे, मैंने देखा की सभी लोग किताब पढ़ रहे है |  टेबल पर तो बहुत ही कम किताब बचती सब लोग जारी करके किताब घर ले जाते |” – यह सुनकर मैं बहुत खुश हुआ | 


लंच के समय सभी लोग बैठे,  मैं दूसरा डिस्प्ले लगा रहा था, सबको नमस्कार किया और चर्चा शुरू किया | धर्मनाथ सर ने कहा “आपने किताब की झलक दिखाई वह बहुत अच्छा था” | सभी लोगों ने कहा की इन किताबों में बहुत मजा आया |  मीना मैडम ने कहा – “मैं घर पर बहुत स्वेटर बुनती हूँ लेकिन इस किताब के चक्कर में कुछ नहीं हुआ, किताब पढ़ने का एक अलग ही मजा है |  ऐसे किताबों से हमें परिचय नहीं था” | उसके बाद मैंने कहा की आप में से कोई है जो अपने पसंदीदा किताब का बूक टॉक करना चाहेंगे | रीता मैडम ने “बेढंगी” किताब का बूक टॉक किया – इस किताब पर चर्चा हुआ और रीता मैडम ने कहा की “किताब में लड़की के कई नाम दिये जाते हैं जो मुझे अच्छा नहीं लगा; क्यों हम किसी के नाम को बिगाड़े? हमारे आस पास में भी बहुत से लोग है जो लोगों को उसके रूप या कार्य से पुकारते है” | धर्मनाथ सर ने भी जोड़ते हुए कहा “मैंने इस किताब को पढ़ा है, इसको पढ़ने के बाद मुझे लगा की सबसे पहले अभिभावक को अपने बच्चे के बारे में समझना होगा, बच्चों को आजादी देनी होगी” |

रीता मैडम द्वारा “बेढंगी” पर Book Talk एवं चर्चा, 20 जनवरी 

उसके बाद मीना मैडम ने कमला भसीन जी द्वारा लिखित “काश मुझे किसी ने बताया होता”  किताब का बूक टॉक किया और चंदा मैडम ने “मितवा” किताब का बूक टॉक किया |  काश के बारे में मीना मैडम ने बताया की “यह किताब पढ़ने के बाद अपने आप पर व्यतीत कई घटनाएं याद आती हैं | हमारे समाज में आज भी अभिभावक अपने बच्चों के बातों पर विश्वास नहीं करते है |  समाज में आय दिन यौन शोषण हो रहा है पर हमलोग उसे दबा देते हैं | उन्होने कहा की मैं इस किताब को अपने स्कूल के सभी लड़कियों को पढ़ने के लिए कहूँगी |  मीना मंच के बच्चियों के साथ चर्चा करुँगी |”  पुष्पा मैडम ने एक इसी से जुड़ी अपने परिचित की कहानी बताई – “एक बच्ची पढ़ने गोपालगंज जाती थी | एक दिन आटो में आ रही थी और उसके बगल में बैठे एक आदमी उसके पैरों को दबा रहा था | वह डर गई और आधे रास्ते में उतर गई और रोने लगी, तभी पुष्पा मैडम के किसी जानने वाले ने उनको फोन किया और बुलाया |  पुष्पा मैडम गई तो वह बहुत डरी हुई थी | उन्होने बहुत पूछा पर बच्ची डर से कुछ नहीं बता रही थी |  उसने कहा की आप पहले मुझसे वादा कीजिये की आप घर पर नहीं बताइएगा | उसने पूरी घटना को बताया और बोली की मम्मी पापा जानेंगे तो पढ़ने नहीं जाने देंगे | इस किताब के बारे में सुनकर मुझे आज यह लग रहा है की कितनी ऐसी लड़कियाँ होगी की अपने घर अपने बातों को नहीं बताती होंगी और जो बताती होंगी उनका घर से निकलना बंद |  उनका क्या दोष है ? हमें अपने घर में बच्चों से इनपर भी बात करनी चाहिए |”

मैंने सोचा भी नहीं था की चर्चा इतनी खुल के हो सकती थी |  काश किताब को प्रधानाध्यापक ने ले लिया और कहा की मैं भी इस किताब को पढ़ूँगा |  शायद पूरे प्रक्रिया की यह सबसे बड़ी जीत थी | 

मीना  मैडम द्वारा “काश मुझे किसी ने बताया होता” पर Book Talk एवं चर्चा, 20 जनवरी
मीना मैडम ने मितवा किताब के बारे में बताते हुये कहा की “इस किताब में भी एक परिवार, बच्ची को उतना नहीं मानता है लेकिन वह अपने पिता का जान बचाती है तब उसके पिता जी उससे प्यार करते है | क्या लड़कियों को अपने अधिकार के लिए हमेशा लड़ना ही होगा ?” (ऐसे चर्चाएं हो तो बस मज़ा ही आ जाता है) | धर्मनाथ सर ने कहा की अब यह पुरानी बात है, अब महिलाएं पुरुषों पर हावी हैं | पर इतना सुनते ही मीणा मैडम ने ही उनके बातों का जबाब दिया की आप कह सकते है पर ऐसा नहीं है | प्रधानाध्यापक ने “क्यों क्यों लड़की” किताब के बारे में बताते हुए कहा की मोयना के मन में जो प्रश्न आते हैं वह हमारे समाज में हो रहे घटनाओं पर आधारित हैं, अपने प्रश्न को खोजते हुए वह किताबों तक पहुँच जाती है |  किताबों में सभी चीज के बारे में दिया गया है, हम किताब पढ़ कर सोच सकते हैं और अपने प्रश्नों को खोज सकते हैं | उन्होने कहा की “यह प्रक्रिया बहुत अच्छा है और सभी शिक्षिकाओं ने बहुत किताबे पढ़ी हैं और मैं उन लोगों को धन्यवाद देता हूँ और सभी सर से कहना चाहता हूँ की इन किताबों को अगर समय मिले तो जरूर एक बार पढे |  मेरा आँख अच्छा हो जायेगा तो मैं अपने पुस्तकालय के सभी किताबों को पढ़ूँगा |”

*Note : यह ब्लॉग प्रयोग में कार्यरत प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेटर, बिनीत रंजन, द्वारा लिखा गया है | ब्लॉग में वे अपने अनुभवों को साझा कर रहे हैं और शिक्षकों के अनुभव को भी साझा कर रहे हैं | अभी तक प्रयोग ने जो भी पुस्तकालय सम्बंधित कार्य किया था वह बच्चों के साथ केंद्रित था पर शिक्षकों के साथ बाल-साहित्य से रूबरू होने का यह हमारा नया प्रयास है | शिक्षकों के अंदर इस प्रक्रिया द्वारा कौतुहल देख कर हम बहुत ही उत्साही हैं तथा हमारा उन तक बाल साहित्य पहुंचाने का सिलसिला जारी रहेगा | इसके लिए प्रेरित करने के लिए हम Bookworm टीम के आभारी रहेंगे | 

Platform number 3: The last hope

Where have the ‘words of wisdom’ flown off: Changing stocks at the book stores

It was an early afternoon on September 4th in Kuchaikote block of Gopalganj (Bihar). As part of our intervention on ‘best practices’ in rural schools, was having an animated discussion with the Block Education Officer (BEO) on some of the remarkable works undertaken by some selected teachers from the block. After all, PRAYOG had worked on identification and documentation of best practices in schools and some of the marvellous works of the teachers in the block have been captured!

It was so encouraging we came across and identified six teachers who have been successful in turning around their schools in terms of teaching pedagogies, infrastructure development, community support, enrolment, retention etc. In the background of the dismal pictures presented about Bihar’s education, their efforts were praise worthy. The BEO, a kind person, was enthused at the development and we decided to honour these creative souls during the 5th September –‘Teachers Day’ function. We got ambitious and decided to reach the District Education Officer (DEO) and with his approval scale- up the program. After some initial hesitation he approved the idea and allowed us to go ahead and assured that he and DPO – SSA would attend the occasion.
Our discussion then veered around awards – what the awards should consist of? Several ideas evolved-a shawl, a bouquet, pen, etc. As self-efficacious people we rejected our own choices again and again and decided to phone our well-wisher and a recent addition to Prayog’s advisory, Vikas -apparently a friend with wisdom who suggested to go for books on patriots and saints-Gandhi, Nehru, Patel, Subhas, spiritual leaders, innovators etc. We celebrated our solution and ran to the books stores in Gopalganj. It was 5 pm then. Shops after shops we made excited visits-Alas! Books were not available. Again called the friend who suggested – Gopalganj may be a backward district, go to Siwan, the neighbouring district headquarter which is also the birth place of Dr. Rajendra Prasad, nation’s first president and whose erudite scholarship is known world over. I was convinced – books will definitely be available over there – the place being the centre of scholarship. My colleague, Binit, with his local roots and knowledge about the place, accompanied me to the district headquarters. Locating and visiting shops became easier. Again the same experience –shops after shops we could not find any book. We got exasperated which gradually turned into frustration. It was 7:30 pm then. I called a teacher friend of mine this time who is a teacher in Navoday Vidyalay in Siwan. He laughed and said, “Bhai, you would get your required book only at Wheeler’s book shop at platform no. 3 of Siwan railway station. Its already late but if you can hurry and explore”.
That was kind of the last spark – yes we will get it. Me and Binit were in agreement –‘yes such books are always available there’! Convinced of our experience we hurriedly went to platform number 3 of Siwan railway station. It was 8 pm now, we almost ran toward the Wheeler shop. Almost breaking down we found the shop was closed. In the meanwhile, I also broke my own record of never entering a platform without a valid platform ticket…such was the urge to get the books.
Broken down with a sense of failed endeavour we started look back to the shops we visited in Gopalganj and Siwan. The shops were many with rick stakes of books. But what were the books like? The stakes consisted of competitive guides, books on short answers, question answers series with spectacled photographs of success gurus. Gandhi, Rajendra Prasad,…. were all lost in oblivion. Our enthusiasm died down, aspirations melted and we felt crest fallen. ‘Where have these books of wisdom flown off’- have they outlived their relevance or where has the readership gone? Felt like crying but again felt like called Vikas
He counselled, perhaps, the last time – visit the market once again and identify and count shops for shoes. We diligently visited the market, rather reluctantly, and started counting the shoe shops. Tired and annoyed reported there are 26 shoe shops in the single lane of the city. He grinned and became little serious –‘ Surya ! Your labour has met with a great discovery. The society prefers shoes to books’- Perhaps the society also deserves the same. A society unmindful of its rich repository will definitely receive shoes rather than bouquet.
The Teacher’s day celebration, today, however, went well and enthusiastically. We shared and narrated the episode with the DEO, DPO, BEO, CRCCs, teachers and other dignitaries who lost, momentarily, words!

Dreams do turn out to be true

One should always dream
One should always welcome failures, they are just to make you better
One should always keep the dream close to one’s heart
Dreams are beautiful. They are the best friends when you know that not many would help you overcome a crisis. They help you emerge as a better person because you get a confidence that anything can be done and that there is nothing in this world that can deter you from achieving your goals. Children are core to all our works but it is also glad to know that our ‘change makers’ also have witnessed significant changes in their life because of the work that Prayog has done.
Ramesh, a young guy in his mid – twenties, was our second team member from the village and joined us in 2015. Like many youths of the village, he too was involved in farming in his fields. He was a Graduate but unfortunately attended college only during exams. It was more because to attend his classes, he would have to spend a fare of Rs.50 daily and it would have burdened the family further (unlike what outsiders think, this is true for a majority of rural youth – not attending college because of the travel cost). When Ramesh joined us, he was raw and was like an angry young mam, often challenging the system and pointing flaws that he could see. We always feared that he would fight with anyone if things are not going right. And this is not Prayog’s approach to work. Well, as time passed by and with several interactive sessions, Ramesh’ anger was gone and he emerged as a much sensitive guy. He worked with out interventions on digital education and community library and contributed a lot. A sincere person to the core!
Ramesh, observing the ongoing tablet session at our community site
Like all good things come to an end, it was Ramesh’s last day at Prayog today. I could not realize contribution of Prayog in his life until he spoke out his heart. Changes in his personal life, his calm nature now, his readiness to face any crisis situation are just a few to mention; he could also register for a professional course through his small earning from Prayog. And the relief in his face while saying that “because of Prayog, he has emerged as an independent person”. Well done young man, we are proud of you and contribution through your works and wish you all the best in life! 
It is such a nice feeling that our initiative is not only bringing change in the children but also bringing ‘smiles’ into the life of all those young colleagues, who are born and brought up in the surrounding  villages and they are seeing life beyond what they had imagined. This is why we believe in ‘Flight of the Dreams’. 

Toon Masti and Learning Outcomes

Toon Masti and Learning Outcomes

PRAYOG started with its Digital Education Initiative in 2 Govt. schools in June 2016 using cartoon based application (TOONMASTI) developed by Ernst and Young Foundation. These cartoon based sessions are conducted on a daily basis in 2 Government schools. A baseline assessment was done before the initiative started. After two and a half months of the beginning of intervention, a re-assessment was done. The following observations are critical to understand some of the changes that are clearly visible: 

PRAYOG is thankful to Gopalganj District Administration: District Collector, Shri Rahul Kumar for constant support and encouragement, Education Department Officials at District, Block Education Officer, Kuchaikote and Teachers and children of Middle School Tulachapar and Badahara to have helped us in shaping this initiative

When you mix experience with innovation, something magical appears! Isn’t it?

When you mix experience with innovation, something magical appears! Isn’t it?

What should an ideal day look like into one’s life?

Experience 1: Envisioning PRAYOG

Prayog emerged due to the needs raised by children and ever since we have tried to figure out their needs time to time and also ensure that there is no gap in the process.In this journey, local youths joined us as we moved ahead and we have four vibrant persons engaged with us: Vijay, Ramesh, Priyanka and Binit. There are days when none of them agree on the suggestions of the other, there are days when they fight for who is right and how things should be done. But never have we faced a crisis of under performance or unwillingness to deliver the job. They all own the works and achievements of Prayog! They are fond to work for Prayog, work for children and fulfilling their dreams.

Around six months ago, Ramesh and Priyanka literally wept when asked about their experience of visiting Akhand Jyoti Eye Hospital. They said in regret, “we are a bit old now, why did something like Akhand Jyoti did not exist when we were that age”. It is with a feeling to bless and willingness to contribute towards a wonderful future of all the children that Ramesh and Priyanka are committed towards Prayog.

November 28th and 29th: All the children were aware that Mishra Sir (they refer to Prof. Rajeshwar Mishra) is coming and they were full of memories of his last visit! Alas, what a way Sir interacts and it thrills everyone! This time it was even more special as Madam (his wife) was also accompanying him to meet the children. I am sure Sir might have shared some stories about children and their excitement which would have motivated Madam to visit here.

After a brief meeting with children on Day 1 and giving them a task, all the four staffs and the local mentor moved to Kushinagar to think on the direction for Prayog. Kushinagar is the place where Buddha attained nirvana. 

 
Priyanka, Vijay, Ramesh and Binit prepared the road map for Prayog and it was very surprising in the way they all moved towards creating Prayog as an institution for learning and where the focus should be on basic education!
 
Staff preparing a road map for PRAYOG
Staff preparing a road map for PRAYOG
How effectively should the community be engaged in any NGO’s works? Frank enough, I have got the chance to observe a number of programs and NGOs which has objectives of community involvement/participation etc but a high majority of them actually stand below par when the community involvement is concerned. Most of these are program based and that limits the scope in itself to instill a passion amongst the community. Prof. Mishra helped us reach a level where people have directly supported us and are willing to expand this network!
Community members returning favours to fulfill children’s demands
Community members returning favours to fulfill children’s demands

Experience 2: Ensuring a proper direction to Youth

August 2015: Vikas Kumar was a 20 year guy living in Semra bazar in Gopalganj district of Bihar. He was one amongst the many youths who was still exploring what he could do in his life. After passing Class 10th few years ago, he had enrolled in an Intermediate college and just as other youths, he knew that he has to appear only for the exams. And why not? When the inter college is 24 kms from his home, how can he bear the cost of daily travel that would be around Rs. 60. And many youths of his age prefer moving out to the west, probably Delhi, Haryana, Gujarat or Maharashtra.

September 2015:ICICI Academy for Skills appears somehow in the neighbouring village, Bania chapar, where PRAYOG’s library set up has been functioning since 2013. A friend of Vikas had informed him about something related to youth’s future is to be organized on September 10th. Vikas participated in the event and was amongst the 25 youths who were identified for a three months residential skill training at the academy in Patna. He was not sure in the beginning as so many fancy stuffs were mentioned and that too everything was to be taken care at the academy, absolutely free of cost.

November 2015: Here is Vikas Kumar!

Vikas after returning from the camp

Vikas is oozing with confidence and sharing his experiences, future goals and the fun he is having at the academy! Vikas underwent a training in electrical appliances for three months and is going to passout on December 12th. He is already placed with a solar manufacturing unit with a monthly salary of Rs.9000.

And so are all the 25 youths who went to learn something. All thanks to the ICICI Academy. Together, these youths would be earning Rs 200000 per month!

This is what PRAYOG is striving for. We plan to engage 100% unemployed youths and who have dropped out of studies to be settled down in life with decent livelihood opportunities and live a life with dignity!

Such was the impact of this association with ICICI Academy for Skills that girls have shown prompt interest to be a part of this and move ahead in life.
         
         
Some pics of engagement with youth of Kuchaikote and Panchdeori blocks, Gopalganj
A good day should be joyful and full of works that give you pleasure. November 28th and 29th were such days which enthralled the purpose of life. Thanks again to the spirit of local youth, our four staff and local mentor. Thanks to the energetic Mishra Sir and Mam to guide us in our journey and a big thanks to Sunil Sinha and Chandan from ICICI Academy for Skills, Patna to visit us with concern for the local youth. Thank you Manish Bhardwaj and Mritunjay Tiwary for being an inspiration and for what you have been doing in rural Bihar.

A big thanks to all the donors who have faith on PRAYOG and keep supporting us. It is because of you that we are able to deliver the changes that we all wish to see in India and its village set up!

What Makes Us Dream And Work Hard?

What Makes Us Dream And Work Hard?

Prayog’s journey started on June 15th, 2013 and every single day has has been extremely exciting towards bringing new dimensions towards the needs of the children living in the villages. From five children of one village, we are now reaching out to more than five hundred children from 12 villages. From traditional form of learning, we are now engaged in digital form of learning for the kids who have just started their education. And 80% of these services is availed by the ‘poorest’ and voiceless section of the society. These are the children of people who do not own resources, land etc and for whom education is not a solution but only reaching out to schools for something is there for free. They even do not know what all are available for free. Someone aptly said that they are the ‘first generation learners’ and we are proud that we are able to raise curiosity and excitement with each passing day.What makes us dream and work hard are a set of activities that we have been able to do in this brief period of two years, these are mentioned below:

1. Community Library and associated works:
  • Established at a community site, has more than 500 members
  • Collection of more than 1000 books
  • Daily English and Hindi newspapers
  • Monthly magazines
  • A librarian to take care of library
  • Exposure visits
 
First Day of the Community Library and PRAYOG – June 15th, 2013
Student Volunteers Conducting Classes

  
Our model was documented and case study covered in a book released during the 1st India Public Library Conference in New Delhi (March 2015) organized by Bill and Melinda Gates Foundation http://iplc.in/wp-content/uploads/2015/03/BP-Book-2015.pdf(see page 15)
1st Exposure Visit October 2013 – Children from Prayog at a week long SPIC MACAY event at Parivartan, Siwan
Second exposure visit to Jalpaiguri in West Bengal
Third exposure visit involved 110 children visiting birthplace of Dr. Rajendra Prasad and Parivartan at Siwan
Third exposure visit involved 110 children visiting birthplace of Dr. Rajendra Prasad and Parivartan at Siwan
 2. Solar lamp initiative

Owing to the irregular supply of electricity, we provided solar study lamps to 200 children during October to December, 2014. We achieved this target and due credits to MILAAP, where we successfully crowd funded for this initiative. A survey was conducted in January 2015 and the results were extremely positive:
       The reach of solar lamps was 4 times and more than 800 children were actually benefitting
       There was an increase in study duration by 2 hours amongst children
Raj can now study without their parents scolding to light up a kerosene lamp!
The 199 children can now study without their parents scolding to light up a kerosene lamp!
3. Curious Learning – a model of self learning
In association with Prajnopaya Foundation, we are implementing a unique model of self learning to inculcate early education to kids between 3-8 years of age through games and modules loaded in tablets.
100 children were identified from 2 villages based on the poor provisions of education: identifying criteria was a balance in gender, maximum number of children belonging to lowest socio economic strata and who cannot have access to the best education facilities. The roll out has already started in June 2015 with 50 tablets and 50 more to start by year end.

We believe in orienting the rural youth and have trained and engaged 3 rural youth facilitators to lead the programme implementation.

Excitement for kids – enabling them with gadgets with a purpose!
Excitement for kids – enabling them with gadgets with a purpose!
4. Creating forward linkages
We are establishing linkages with other institutions and were successful to admit 12 girls between Class 6 – 9th to a unique education initiative of the biggest eye hospital of eastern India, located at Saran district of Bihar. These girls would be trained to become professional footballers from Day 1 and move on to pursue a degree in Optometry that would ensure their future with job when they pass out. More than this, they would emerge out as an empowered woman and becoming role model for village girls who lack confidence and resources to move higher up the ladder.

If There Is A Rebirth, Give Me An Animal’s Body

If There Is A Rebirth, Give Me An Animal’s Body

Author's Note: This write up is the translated version of a Class 10th girl who wrote on the situation of women in villages. I agree this is universal and thought to publish it in our blog. This will also feature in our first Quarterly newsletter to be out in August 2015. The world needs to know what a young 14-15 year old girl has gone through, is going through and anticipates her future. Her thought process is marvelous and this needs to be given a shape based on her strengths. She doesn't need to think all this throughout her life and end it thinking that nothing could be done.
 
"Every woman in our country is entitled with the same rights as a man has been. But, do they utilize their rights in real sense? I think, absolutely no.

Our society has been patriarchal. Law gives every woman these rights in equal footage with a man but there is an abundance of people with conservative mindset who cannot digest of a woman standing in similar line as a man. And these are the people who would never allow a woman to enjoy her rights. Instead, what does a woman get back from this society? Only words of discouragement and setbacks.

Even before a girl is born, her struggles start. When in the mother’s womb till old age, she lives a fearful life throughout. When I was to enter this beautiful world, then my very own people had a wish for son and so they did sex determination. As soon as they knew that a daughter would be born, my own people agreed to terminate me before seeing this world. Even my mother and grandmother, who themselves are someone’s daughter, were in consensus. Somehow my fate was not to die and I entered this world happily, thinking “what a wonderful life lies ahead of me”. But this did not happen. I was not even able to stand well that devils started demolishing me in lieu of sweets and chocolates. Mother restrained my movement out of house since childhood, but later realized that I should get some education to ensure my marriage. Though the family allowed me to move out of home to school but mother reminded, “better be safe, you are entering into a dangerous world”. These words would pierce through my ears like a sharp knife, each time I would step out of my home. Somehow I completed high school and my parents thought that the education is now over, “she is not a boy that we should pursue her education, neither would she earn..so why to waste resources for her education”. So next was my marriage which could relieve them from me though I was not even in the shape of getting married. I wanted to study, I wanted to be self dependent but no one cared for what my thoughts were. And why would have they asked me anything, after all I was a daughter only and I didn’t have the freedom to decide on my future. My life has always been on the verge of decisions by other people, this resulted into shattering of my yet another dream. I was married as a child, I cried a lot and my mother remained a mute spectator. I will not blame her, rather would blame the entire society which just objectifies women, women to be used and thrown.

Post marriage, at my husband’s place, I thought that life here would be safe and I can study now. But the condition here was worse and I was humiliated every day for dowry. They attempted to burn and kill me and the first person to try was my husband, who had taken a oath in front of everyone to be with me during my times of happiness and sorrows. And when I survived of this, I again went under agony of giving birth to a girl child, so much so that I now start thinking to end my life along with my daughter. But still, my prayers for my husband continue.

A woman’s patience is considered as the biggest weakness by this society and hence everybody plays with her life insanely. When a woman survives all the agonies of childhood and adult age of hers, she now thinks in the old age that she is now safe, nobody can harm her physically or mentally. She is so wrong even at this time. The son whom she might have thought would take care of her in the old age is now mature and has learnt all the skills from this society. He now turn out to be brutal and starts harassing her, beating her up whenever she raises the demands for her old age.

My only prayer to God, if I there is rebirth, give me an animal’s body but never mould me into a woman’s body. For if I go through this life cycle in an animal’s body, it would be fine as animal’s do not know what is good or bad. But living an animal’s life in a human body gives pain and shatters dreams. To hell with this society which has created boundaries for women.  I only pray to you God, please do not shape me as a daughter in my next birth".